इस कवि का एक छन्द भी देखियेः—
ऋतु असाढ़ घन घेर आयो लाग चमकै दामिनी।
ऋतु सुहावन देखि मन महँ हरष बाढै भामिनी।
ऋतु घमंड सोँ मेघ धाये दिवस में जस जामिनी।
रैनि दिन करुना करैं घर में अकेली कामिनी।
जो रचनायें मैंने ऊपर उद्घृत की हैं उनके देखने से यह ज्ञात होता है कि प्रेम-मार्गी सभी कवियों ने अवधी भाषा में लिखने की चेष्टा की है और अधिकतर अपनी परम्परा को सुरक्षित रखा है। सब की भाषा 'पदमावत' का अनुकरण करती है और उस ग्रन्थ की अन्य प्रणाली भी इन रचनाओं में गृहीत मिलती है। रहस्यवाद और सूफ़ी सम्प्रदाय के विचार भी सब रचनाओं में ही कुछ न कुछ दृष्टिगत होते हैं। इस लिये इस निश्चय पर पहुँचना पड़ता है कि मुहम्मद जायसी के परवर्ती कवियों ने कोई नई उद्भावना नहीं को और न अपनी रचनाओं में कोई ऐसी विशेषताये दिखलायी जिससे साहित्य में उनका विशेष स्थान होता। यह अवश्य है कि निसार और फ़ाज़िल शाह ने अपने ग्रन्थों के लिये स्वधर्मी पात्रों को चुना। निसार ने यदि यूसुफ़-ज़ुलेखा की कहानी लिखी है तो फ़ाजिल शाह ने नूरशाह और मेहर मुनीर को परन्तु इसने अपने ग्रंथ का हिन्दी नाम कारण हो किया है, अर्थात् अपने ग्रन्थका नाम 'प्रेम-रतन' रखा है।
परवर्ती कवियों की भाषा मुहम्मद जायसी की भाषा से कुछ प्राञ्जल अवश्य है और उनकी रचनाओं में संस्कृत शब्दों का प्रयोग भी अधिक देखा जाता है। परन्तु जो प्रवाह जायसी की रचना में मिलता है इनलोगों की रचनाओं में नहीं। अवधी भाषा की जो सादगी सरसता और स्वाभाविकता उनकी कविता में मिलती है इन लोगों की कविता में नहीं। यह मैं कहूंगा कि परवर्ती कवियों की रचनाओं में गँवारी शब्दों की न्यूनता है किन्तु उनका कुछ झुकाव ब्रजभाषा की प्रणाली और खड़ी बोली के वाक्य-विन्यास और शब्दों की ओर अधिक पाया जाता है। उनकी रच-