पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२५

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वास्तविक रूप नहीं मिलता । साहित्यगत साधारण परिवर्तन भाषा के मुख्य स्वरूप का वाधक कदापि नहीं।

योरोपियन विद्वान् कहते हैं कि वैदिककाल से पहले एक विशाल जाति मध्य एशिया में रहती थी, जब यह विभत्त हुई तो इसमें से कुछ लोग योरोप की ओर गये, और कुछ ईरान एवं भारतवर्ष में पहुंचे, और अपने अपने उपनिवेश वहां स्थापित किये। किन्तु भारतीय आय साहित्य में इसका पता नहीं चलता। वैदिक और लौकिक संस्कृत साहित्य का भाण्डार बड़ा विस्तृत है, उसमें साधारण से साधारण वातों का वर्णन है, किन्तु इस बात की चर्चा कहीं नहीं है, कि आर्य जाति बाहर से भारतवर्ष में आई । इसलिये अनेक आय्य विद्वान योगेपियन सिद्धान्त को नहीं मानते उनका विचार है कि आयजाति का आदि निवास स्थान भारतवप ही है, और यहीं सं वह दूसरे स्थानों में गई है। हिन्दू सपीरियरटी, में इसका अच्छा वर्णन है । बम्बई के प्रसिद्ध विद्वान खुम्दजी मम्तमजी ने बम्बई को ज्ञान प्रसारक मण्डली के उद्योग सं एकबार 'मनुष्यों का मूल जन्म स्थान कहां था, इस विषय पर एक व्याख्यान दिया था, उसका सारांश यह है:---

"जहां से सारी मनुष्य जाति संसार में फैली । उस मूल स्थान का पता हिन्दुओं, पारसियों, यहूदियों और कृश्चियनों के धर्म पुस्तकों से इस प्रकार लगता है कि वह स्थान कहीं मध्य एशिया में था। योगेप निवासियों की दन्त कथाओं में वर्णित है कि, हमार पूर्व गजा कहीं उत्तर में रहते थे पारसियों की धर्म पुस्तकों में लिया है कि जहां आदि मृष्टि हुई, वहां दम महीने सर्दी और दो महीनं गर्मी रहती है। स्टुअट, एलफिन्स्टन, वग्नस आदि यात्रियों ने मध्य एशिया में भ्रमण करके बतलाया है कि हिन्दकुश और उसके निकटवर्ती पहाड़ों पर १, महीनं मर्दी और दो महीन गर्मी होती है। उनके ऊपर से चारों ओर नदियां बहती हैं । इस स्थान के ईशान कोण में 'वालूतांग, तथा 'मुमावरा' पहाड़ है ! ये पहाड़ 'अलवुन' के नाम से पारसियों की धर्मपुस्तकों और अन्य इतिहासा में लिखे हैं। 'बालुाग, से 'अमू' अथवा 'आक्षम' और जंक जाटम नाम की नदियां 'अग्न' सगेवर में होकर बहती हैं। इसी पहाड़ में से निकल कर 'इन्डम' अथवा सिन्धु