पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२६

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नदी दक्षिण की ओर बहती है। इसी ओर के पहाड़ों में से प्रसूत होकर बड़ी बड़ी नदियां पूर्व और चीन में और उत्तर ओर साइबरिया में प्रवेश करती हैं । ऐसे रम्य और शान्त स्थान में पैदा हुये लोग अपने को आर्य कहते थे, और 'स्वर्ग' कहकर उसका आदर करते थे"? यह प्रदेश भारतवर्ष के उत्तर में है, और हिन्दबुझा से तिब्वत तक फैला हुआ है, इसी के अन्तगत, मुमेझ तथा कैलाश जैस पुगण प्रसिद्ध पर्वत और मानसरोवर ममान प्रशंसित महासोवर है। यहीं किन्नर और गन्धर्व रहते हैं, जो स्वर्ग निवासी बतलाये गये हैं। तिब्बत का दक्षिणी भाग हमारे आराध्य हिमालय का ही एक अंश है, इसीलिये उम्मका संस्कृत नाम भी स्वर्ग का पर्यायवाची है--अमर कोशकार लिग्बते हैं.

स्वरव्ययं म्वर्ग नाक त्रिदिव विदयालया। मुग्लोको चौ दिवो व स्त्रियां क्लीवे त्रिविष्टप ।।

वरग्वेद में कंधार निवानी आय समुदाय के गजा दिवोदास और सिंधु नद के समीप वमन वाली आय जनता के राजा सुदास का वर्णन मिलता है, इसके उपरान्त गंगा यमुना कृल के मंत्रों की रचना का पता चलता है। इसमें पाया जाता है कि कंधार अथवा गांधार से ही आयलोग पूर्व और दक्षिण की ओर बढ़े, यदि गांधार के पश्चिमोत्तर प्रदेश से वे आगे बढ़त तो उनका वान अरग्वेद में अवश्य होता। किन्तु ऐसा नहीं है । इसलिये इसी सिद्धान्त को स्वीकार करना पड़ता है कि आय जाति की उत्पत्ति हिमालय के पवित्र अंक में ही हुई है, और वहीं से वे भारत के और प्रदेशों में फैले हैं। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी मत्याथ प्रकाश में यही लिखा है ....

"आदि सष्टि विविष्टप अर्थात तिव्वत में हई" यदि यह तर्क किया जाव कि फिर आर्य जाति का प्रवेश योगेप में कैसे हुआ ? तो इसका उत्तर यह है कि जो जाति अपने जन्मस्थान से पूर्व और दक्षिण की ओर बढ़ी, क्या वह पश्चिम और उत्तर को नहीं बढ़

दवो अक्षर विज्ञान पृ. ३१.३५