पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२५१

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( २३७ ) के हृदय में विवध युक्तियों से अंकित करते रहते हैं। क्या किसी सूफ़ी प्रेम- मार्गी कवि की रचनाओं में वह अलौकिक मुरली-निनाद हुआ, वह लोक-विमुग्ध कर गान हुआ, उस सुरदुर्लभ शक्ति का विकास हुआ, उस शिव संकल्प का समुदय हुआ और उन अचिन्तनोय सत्य भावों का आवि. र्भाव हुआ जो महामहिम सूरदास जैसे महात्माओं की महान रचनाओं के अवलम्बन हैं ? ओर यहो सब ऐसे प्रबलतम कारण हैं कि इन महापुरुषों की कृतियौं का अधिकतर आदर हुआ और वे अधिकतर व्यापक बनीं । इन सफलताओं का आदिम श्रेय हिन्दी साहित्य में प्रज्ञाचक्षु सूरदासजो ही को प्राप्त है। ___ मैं समझता हूँ', सूरदास जी का भक्ति-मार्ग और प्रेमपथ श्रीमद्भागवत के सिद्धान्तों पर अवलम्बित है और यह महाप्रभु वल्लभाचार्य के सत्संग और उनकी गुरु-दीक्षा ही का फल है। सूरमागर श्रीमद्भागवत का ही अनुवाद है, परन्तु उसमें जो विशेषताये हैं व सूरदास जी की निजी सम्प- त्तियां हैं। यह कहा जाता है कि उनको प्रणालो 'भक्तवर जयदेव जी के 'गीत गोविन्द एवं मैथिलकोकिल विद्यापतिको रचनाओस भी प्रभावित है। कुछ अंश में यह बात भी स्वीकार की जा सकती है. परन्तु सूरदासजी की सो उदात्त भक्ति-भावनायें इन महाकवियों की रचनाओंमें कहां है ? मैं यह मानूंगा कि सूरदासजीकी अधिकतर रचनायें श्रृंगार ग्म-गर्भित हैं । परन्तु उनका विप्रलम्भ शृंगार ही, विशेष कर हृदय-ग्राही और गार्मिक है । कारण इसका यह है कि उसपर प्रेम-मार्ग की महत्ताओं की छाप लगी हुई है। यह सत्य है कि मैथिल काकिल विद्यापति की विप्रलम्भ शृंगार की ग्चनायें भी बड़ी ही भावमयो हैं. परन्तु क्या उनमें उतनी ही हृदय-वेद- नाओं की झलक है जितनी सूरदास जी की रचनाओं में ? क्या वे उतनी ही अश्रु-धाग से सिक्त, उतनी ही मानसोन्मादिनी और उतनो हो मर्म स्पर्शिनी और हृदयवेधिनी हैं जितनी सूरदासजोकी उक्तियां ? क्या उनमें भी वेसा ही करुण क्रन्दन सुन पड़ता है जेसा सूरदास जो को विरागमयी बचनावली में ? इन बातों के अतिरिक्त सूरदास जो की रचनाओं में और भो कई एक विशेषतायें हैं। उनका बाललीला-वणन और वालभावों का