नहीं। सूरदास जी का मुरली निनाद विश्व विमुग्धकर है। उनकी प्रेम-सम्बन्धी कल्पनायें भी बड़ी ही सरस एवं उदात्त हैं। परन्तु गोस्वामी जी की मेघ-गम्भीर गिरा का गौरव विश्वजनीन है और स्वर्गीय भी। उनकी भक्ति भावनायें भी लोकोत्तर हैं। इसीलिये मेरा विचार है कि गोस्वामीजी का पद सूरदास जी से उच्च है।
मैंने पहले यह लिखा है कि अवधी और ब्रजभाषा दोनों पर उनका समान अधिकार था। मैं अपने इस कथन को सत्यता प्रतिपादन के लिये उनकी रचनाओं में से दोनों प्रकार के पद्यों को नीचे लिखता हूं। उनको पढ़ कर आपलोग स्वयं अनुभव करेंगे कि मेरे कथन में अत्युक्ति नहीं है।
१—फोरइ जोग कपारु अभागा।
भलेउ कहत दुख रउरेहिं लागा।
कहहिं झूठि फुरि बात बनाई।
ते प्रिय तुम्हहिं करुइ मैं माई।
हमहुँ कहब अब ठकुर सोहाती।
नाहिँ त मौन रहब दिन राती।
करि कुरूप विधि परबस कीन्हा।
बवा सो लुनिय लहिय जो दीन्हा।
कोउ नृप होइ हमै का हानी।
चेरि छाँड़ि अब होब कि रानी।
जारइ जोग सुभाउ हमारा।
अनभल देखि न जाइ तुम्हारा ।
तातें कछुक बात अनुमारी।
छमिय देवि बड़ि चूक हमारी।
तुम्ह पूंछउ मैं कहत डराऊँ।
धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ।