पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२७८

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( २६४ ) रहा प्रथम अब ते दिन बीते । समउ फिरे रिए हो पिरीते । जर तुम्हारि चह सवति उखारी। सँधहु करि उपाइ बर बारी। तुम्हहि न सोच सोहाग बल, निज बस जानहु राउ । मन मलीन मुंहु मीटु नृप, राउर सरल सुभाउ । जौ असत्य कछु कब बनाई। तो विधि देइहि हमहिं सजाई । रेख बँचाइ कहहुँ बल भाखी । भामिनि भइहु दूध कै माखी । काह करउँ सखि सूध मुभाऊ। ___ दाहिन बाम न जानउँ काऊ । नैहर जनम भरव बरु जाई । जिअत न करब सवति सेवकाई। रामायण २-मोकहँ झूठहिं दोष लगावहिं । मइया इनहिं बान परगृह को नाना जुगुति बनावहिं। इन्ह के लिये खेलियो छोरो तऊन उबरन पावहिं । भाजन फोरि बोरि कर गोरस देन उरहनो आवहिं । कबहुंकबाल रोवाइ पानि गहि एहि मिस करि उठि धावहिं।