करहिं आप सिर धरहिं
आन के बचन बिरंचि हरावहिं ।
मेरी टेव बूझ हलधर सों संतत संग खेलावहिं । जे अन्याउ करहिँ काहू को तेसिसु मोहिं न भावहिं ।
सुनि सुनि बचन-चातुरी ग्वालिनि हँसि हँसि बदन दुरावहिं ।
बाल गोपाल केलि कल कीरति ।
तुलसि दास मुनि गावहिं
३-अबहिं उरहनो दै गई बहुरो फिरि आई। सुनि मइया तेरी सौं करौं याकी टेव लरन की सकुच बेंचि सी खाई। या व्रज में लरिका घने हौं हो अन्याई ।
मुँह लाये मूँडहिं चढ़ी अन्तहु
अहिरिनि तोहिं सूधी करि पाई।
कृष्ण गोतावली।
रामायण का पद्य अवधी बोल चाल का बड़ा ही सुन्दर नमूना है। उसमें भावुकता कितनी है और मानसिक भाव का कितना सुन्दर चित्रण है इसको प्रत्येक सहृदय समझ सकता है। स्त्री-सुलभ प्रकृति का इन पद्यों में ऐसा सच्चा चित्र है कि जिसको बारबार पढ़ कर भी जी नहीं भरता । कृष्ण गीतावली के दोनों पद भी अपने ढंग के बड़े ही अनूठे हैं । उनमें व्रजभाषा-शब्दों का कितना सुन्दर व्यवहार है और किस प्रकार महावरों की छटा है वह अनुभव की वस्तु है। बालभाव का जैसा चित्र दोनों पदों में है उसकी जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है । गोस्वामी जी की लेखनी का यही महत्व है कि वे जिस भाव को लिखते हैं उसका यथातथ्य चित्रण कर देते हैं और यही महाकवि का लक्षण है। गोस्वामी