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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२८२

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दूध भात की दोनी दैहों
सोने चोंच मढ़ैहौं
जब सिय सहित बिलोकि।
नयन भरि राम लखन उर लैहौं।
अवधि समीप जानि जननी
जिय अति आतुर अकुलानी।
गनक बुलाइ पाय परि पूछत
प्रेम मगन मृदु बानी।
तेहि अवसर कोउ भरत
निकट ते समाचार लै आयो।
प्रभु आगमन सुनत तुलसी
मनो मरत मीन जल पायो।
गीतावली
८—बावरो रावरो नाह भवानी।
दानि बड़ो दिन देत दये
बिनु बेद बड़ाई भानी।
निज घर की बर बात बिलोकहु
हो तुम परम सयानो।
सिवकी दई संपदा देखत
श्री सारदा सिहानी।
जिनके भाल लिखी लिपि
मेरी सुख की नहीं निसानी।
तिन रंकन को नाक सँवारत
हौं आयों नकवानी।