पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२८३

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( २६९ ) दुख दीनता दुखी इनके दुख जाचकता अकुलानी । यह अधिकार सौ पिये औरहि भीख भली मैं जानी। प्रेम प्रसंसा विनय व्यंग जुत - सुनि विधि की बर बानी । तुलसी मुदित महेस मनहि मन जगत मातु मुसकानी । ९-अबलौं नसानी अब ना नसैहौं । राम कृपा भव निसा सिरानी जागे फिर न डमैहौं । पायो नाम चारु चिंतामनि ____उर कर ते न खसैहौं । स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनाहिँ कसैहौं । परवस जानि हस्यों इन इन्द्रिन निज बस ह न हंसैहीं । मन मधु कर पन करि तुलसी रघुपति पद कमल वसैहौं। विनयपत्रिका १०-गरब करहु रघुनन्दन जनि मन माँह । देखहु आपनि मूरति सिय के छाँह । डहकनि है उँजियरिया निसि नहिं घाम जगत जरत अस लागइ मोहि बिनु राम।