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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२८४

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अब जीवन कै है कपि आस न कोई।
कनगुरिया कै मुँदरी कंकन होइ।
स्याम गौर दोउ मूरति लछिमन राम।
इनते भई सित कीरति अति अभिराम।
विरह आग उर ऊपर जब अधिकाइ।
ए अँखिया दोउ बैरिन देहिं बुताइ।
सम सुवरन सुखमाकर सुखद न थोर।
सीय अंग सखि कोमल कनक कठोर।

बरवै रामायण


११—तुलसी पावस के समै धरी कोकिला मौन।
अबतो दादुर बोलि हैं हमै पूछि है कौन।
हृदय कपट बर बेष धरि बचन कहैं गढ़ि छोलि।
अब के लोग मयूर ज्यों क्यों मिलिये मन खोलि।
आवत ही हरखै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहाँ न जाइये कंचन बरसै मेह।
तुलसी मिटै न मोह तम किये कोटि गुन ग्राम।
हृदय कमल फूलै नहीं बिनु रवि कुल रवि राम।
अमिय गारि गारेउ गरल नारि करी करतार।
प्रेम बैर की जननि जुग जानहिं बुध न गँवार।

दोहावली

ब्रजभाषा और अवधी के विशेष नियम क्या हैं, मैं इसे पहले विस्तार से लिख चुका हूं। मलिक मुहम्मद जायसी और सूरदास की भाषा में उक्त भाषाओं के नियमों का प्रयोग भी दिखला चुका हूं। गोस्वामी जी की रचना में भी अवधी और ब्रज-भाषा के नियमों का पालन पूरा पूरा