पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३०५

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उरज जलज शोभा नाभि कोषं सरोजं।
चरण कमल हस्ती लीलया राजहंसी।

इसके बाद गोस्वामी जी को सँस्कृत छन्दों में सँस्कृत गर्भित रचना करते देखा जाता है। विनय पत्रिका का पूर्वार्द्ध तो सँस्कृत-गर्भित रचनाओं से भरा हुआ है। गोस्वामी जी के अनुकरण से अथवा अपने सँस्कृत साहित्य के प्रेम के कारण केशवदासजी को भी सँस्कृत गर्भित रचना सँस्कृत वृत्तों में करते देखते हैं। इनके भी कोई कोई पद्य ऐसे हैं जिनको लगभग सँस्कृत का ही कह सकते हैं। इन्होंने ३०० वर्ष पहले भिन्न तुकान्त छन्द की नींव भी डाली, और वे ऐसा संस्कृत वृत्तों के अनुकरण से ही कर सके।


(क)

इस सोलहवीं शताब्दी में और भी कितने ही प्रसिद्ध कवि हिन्दी भाषा के हो गये हैं। उनकी रचनाओं का उपस्थित किया जाना इस लिये आवश्यक है कि जिससे इस शताब्दी की व्यापक भाषा पर पूर्णतया विचार किया जा सके। इसी शताब्दी में एक भक्त स्त्री भी कवियित्री के रूप में सामने आती हैं और वे हैं मीराबाई। पहले मैं उनकी रचनाओं को आपके सामने उपस्थित करता हूं! मीराबाई बहुत प्रसिद्ध महिला हैं। वे चित्तौड़ के राणा की पुत्रवधू थीं। परन्तु उनमें त्याग इतना था कि उन्हों ने अपना समस्त जीवन भक्ति भाव में ही बिताया। उनके भजनों में इतनी प्रवलता से प्रेम-धारा बहती है कि उससे आर्द्र हुए बिना कोई सहृदय नहीं रह सकता। वह सच्ची वैष्णव महिला थीं और उनके भजनों के पद पद से उनका धर्मानुराग टपकता है इसी लिये उनकी गणना भगवद्भक्त स्त्रियों में होती है। उस काल के प्रसिद्ध सन्तों और महात्माओं में से उनका सम्मान किसी से कम नहीं है। उनकी कुछ रचनायें देखिये:—

"मेरे तो गिरधर गुपाल दूसरा न कोई।
दूसरा न कोई साधो सकल लोक जोई।
भाई तजा बन्धु तजा तजा सगा सोई।
साधु संग बैठि बैठि लोक लाज खोई।