पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३०६

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भगत देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
अँसुअन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
दधि मथ घृत काढ़ि लियो डार दई छोई।
राणा विष प्यालो भेज्यो पीय मगन हेाई।
अब तो बात फैलि गई जाणै सब कोई।
मीरा राम लगण लागी हेाणी होयसो होई।

२––एरी मैं तो प्रेम दिवाणी मेरा दरद न जाणे कोय।
सूली ऊपर सेज हमारी किस विध सोणा होय।
गगन मंडल पै सेज पिया की किस विध मिलना होय।
घायल की गति घायल जानै की जिन लाई होय।
जौहरी की गति जौहरी जाने की जिन जौहर होय।
दरद को मारी बन बन डोलू वैद मिला नहि कोय।
मीरा की प्रभु पीर मिटैगी (जब) बैद सँवलिया होय।

३––बसो मेरे नैनन में नँदलाल।
मोहनि मूरति सांवरि सूरति नैना बने विसाल।
अधर सुधारस मुरली राजित उर बैजन्ती माल।
छुद्र घंटिका कटि तट शोभित नूपुर शब्द रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई भक्त बछल गोपाल।

४––वंसी वारो आयो म्हारे देस।
थारी सांवरी सूरत बारी बैस।
आऊं आऊं कर गया साँवरा कर गया कौल अनेक।
गिणते गिणते घिसगई उँगली घिसगई उँगलीकी रेख।
मैं बैरागिन आदि की थारे म्हारे कद को सँदेस।