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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३७७

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भीतर ही जु लखी सु लखी अब

बाहिर जाहिर होति न दार है।

जोन्ह सी जोन्है गई मिलि यों

मिलि जात ज्यों दृध में दूध की धार है।

मंदर महिंद गन्ध मादन हिमालय में

जिन्हें चल जानिये अचल अनुमाने ते।

भारेक जरारे तैसे दीरघ दतारे मेघ

मण्डल विहंडैं जे वै सुंडा दंड ताने ते।

कीरति विसाल क्षिति पाल श्री अनूप तेरे

दान जो अमान कापै बनत बखाने ते ।

इतै कवि मुख जस आखर खुलत

उतै पाखर समेत पील खुलै पीलखाने ते।

इनका अध्यात्म-प्रकाश वेदांतका बड़ा सुन्दर ग्रंथ है। उसको रचना की बड़ी प्रशंसा है. उसमें विषय-सम्वन्धी ऐसी महत्तायें हैं कि उनके आधार से लोग इनको महात्मा कहने लगे थे। इसमें संदेह नहीं कि इनकी रचनायें ब्रज- भाषा-साहित्य में अमूल्य हैं। उसी के वल से इन्होंने औरंगज़ेब के मंत्री फाज़िल अली से बड़ा सत्कार प्राप्त किया था, जो इस बातका सूचक है कि अकबर के समय से जो ब्रजभाषा को धाक उनके बंशवालों पर जमी वह लगातार बहादुर शाह तक अचल रही ।

(८) कालिदास त्रिवेदी सहृदयता में यथा नामः तथा गुणः अर्थात दूसरे कालिदास थे। 'कालिदास हज़ारा' इनका बड़ा मुंदर संग्रह कहा जांता है इसमें २०० से अधिक कवियों की रचनायें संगृहीत हैं। इसके आधार से शिवसिंह सरोजकार ने अनेक प्राचीन कवियों की जीवनी का उद्धार किया था । इनका नायिका-भेद का वधू-विनोद नामक ग्रंथ भी प्रसिद्ध ग्रंथ है। इन्होंने 'जंजीराबंद' नाम का एक ग्रंथ भी बनाया था । उसमें ३२ कबित्त