पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३८६

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है। 'रूप विलास पिंगल', 'षट् ऋतु बरवै' और 'ऋतूपसंहार' नामक ग्रन्थ भी उनके रचे बतलाये जाते हैं। उन्होंने महाभारत की रचना गोस्वामी जी के रामायण के आधार से की है। परन्तु उनकी भाषा साहित्यिक व्रजभाषा हैं । वे पछाँह के रहने वाले थे। इस लिये उनकी रचना में खड़ो बोली और अवधो का पुट भी है । भाषा न तो जैसी चाहिये वैसी सरस है और न प्रांजल। फिर भी महाभारत की कथा का जनता को परिचय कराने के लिये उनका उद्योग प्रशंसनीय है। उनके इस ग्रन्थ का कुछ प्रचार भी हुआ। परन्तु वह सर्व साधारण को अपनी ओर अधिक आकर्षित न कर सका । उनकी रचना का नमूना लीजिये:-

लै के शूल कियो परिहारा ।

बीर अनेक खेत महं मारा ।

जूझी अनी भभरि कै भागे ।

हँसि के द्रोण कहन अस लागे ।

धन्य धन्य अभिमनु गुन आगर ।

सब छत्रिन महं बड़ो उजागर ।

धन्य सहोद्रा जग में जाई ।

ऐसे वीर जठर जनमाई ।

धन्य धन्य जग में पितु पारथ ।

अभिमनु धन्य धन्य पुरुषारथ ।

एक बार लाखन दल मारे ।

. अरु अनेक राजा संहारे ।

धनु काटे शंका नहिं मन में ।

रुधिर प्रवाह चलत सब तन में ।

एहि अंतर बोले कुरु राजा ।

धनुष नाहिं भाजत केहि काजा ।