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सब ते मधुर ऊख ऊख ते पियूख औ पियूख हूं ते मधुर है अधुर पियारी को । जहां क्रमिकन को ऋमै ते यथा क्रम 'यथासंख्य' बैननैननैन कोन ऐसे धाराको कोकिल ते कल कंज दल ते अदल भाव जीत्यो जिन काम की कटारीनोकवारी को
२---माने सनमाने तेई माने सनमाने सनमाने सनमान सनमान पाझ्यतु है । कहै कवि दूलह अजाने अपमाने अपमान सों सदन तिनही को छाइयतु है। जानत हैं जेऊ तेऊ जात हैं बिराने द्वार जान बूझ भूले तिनको सुनाइयतु है । काम बस परे कोऊ गहत गरूर है तो अपनी जरूर जा जरूर जाइयतु है ।
बेनी नाम के दो कवि हो गये हैं। दोनों बंदी जन थे । पहले बेनी
असनो के निवासो थे इनका समय सत्रहवीं ईस्वी शताब्दी का प्रारम्भ है। ये अपनी कविता में बेनो नाम हो रखते थे। दूसरे बनो जिला रायबरेली के थे। ए इस शताब्दी में हुए । पद्योंमें अपने नामके बाद ए प्रायः कवि भी लिखते हैं. यही दोनों को पहचान है। पहले बेनी का कोई ग्रंथ अव तक नहीं मिला। उनको स्फुट रचनायें अधिक मिलती हैं । शिव सिंह सरोज कार ने इनके एक ग्रंथ की चर्चा की है। पर वह अब तक अप्रकाशित है। संभव है कि वह अप्राप्य हो। इनमें दूसरे बेनी के समान विशेषतायें नहीं हैं। परंतु ये एक सरस हृदय कवि थे. इनकी भाषासे रस निचुड़ा पड़ता है। इनके दो पद्य नोचे लिखे जाते हैं :--