पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

( ४१८ )

       छाया छत्र ह्रै कर करत महिपालन को
           पालन को पूरो फैलो रजत अपार है ।
       मुकुत उदार ह्रै लगत सुख श्रौनन में
           जगत जगत हंस हास हीर हार है ।
       ऋषि नाथ सदानंद सुजस बलंद
           तमबृंद के हरैया चंद्र चंद्रिका सुढार है।
       हीतल को सीतल करत घनसार है
           महीतल को पावन करत गंगधार है ।
   रतन कवि गढ़वाल के राजा फ़तेह साह के यहां थे। उन्होंने ' फ़तेह-

भूषण' और 'अलंकार-दर्पण' नाम के दो ग्रंथ रचे । इनको रचना-शैली सुंदर और विशद है। एक पद्य देखिये :---

       काजर को कोरवारे भारे अनियारे नैन
           कारे सटकारे बार छहरे छवानि छ्वै ।
       स्याम सारी भीतर भभक गोरे गातन की
           ओप वारी न्यारी रही बदन उँजारी है।
       मृगमद बेंदी भाल अनमोल आभरन
           हरन हिये की तू है रंभा रति ही अयै ।
       नीके नथुनी के तैसे युगल मुहात मोती
           चंद पर च्चै रहे सु मानों सुधा बुंद है।
   चंदन बंदी जन पुवांया के रहने वाले थे। गजा केसरीसिंह के यहाँ

रहते थे । इन्हों ने दस बारह ग्रंथों की रचना की है, जिनमें से 'शृंगार- सागर' काब्याभरण' और कल्लोल तरंगिणी' अधिक प्रसिद्ध हैं। इन्हों ने एक प्रवन्ध काव्य भी लिखा है जिसका नाम 'शीत वसंत' है। ये फ़ारसी के भो शायर थे। इनका एक पद्य देखियेः---