पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४५

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अभाव न रह जावेगा, और ऐसी अवस्था में पहली प्राकृत वही होगी, वोल चाल पर दृष्टि रखकर उसको एक पृथक् भाषा स्वीकार करना पड़ेगा। किन्तु प्रायः विद्वानों ने उसके अन्यतम रूप पाली को ही आदि और सब से प्राचीन प्राकृत होने का गौरव दिया है, अतएव मैं भी इसको स्वीकार कर लेता हैं । पाली भाषा का साहित्य बडा विस्तृत है प्राकृत भाषा का पहला व्याकरण पाली में ही है, और वह कात्यायन का बनाया हुआ है । पालि प्रकाशकार कहते हैं (पृ० १०१) कि पालि व्याकरण समूह संस्कृत के आदर्श पर ही रचित है, कात्यायन व्याकरण के अनेक सूत्र, कातन्त्र के संस्कृत व्याकरण के सूत्रों के साथ अधिकतर सम्बन्ध रखते हैं। अनेक सूत्र उसमें पाणिनि के भी लिये गये हैं। इस दृष्टि से भी पालि भाषा को पहली प्राकृत कहा जा सकता है, क्योंकि वह अधिकतर संस्कृतानुवर्तिनी है।

अशोक के जितने स्तम्भ प्राप्त हुये हैं, उनमें से अधिकांश की भाषा पाली ही है। यद्यपि स्तम्भ के लेखों में कहीं कहीं भाषा भेद दृष्टिगत होता है, और इसलिये कुछ विद्वानों की सम्मति है, कि अशोक के समय में ही पालीभाषा में परिवर्तन होने लग गया था, क्योंकि यह अनुमान किया जाता है कि प्रत्येक स्तम्भ की भाषा उस स्थान के प्रचलित भाषा से सम्बन्ध रखती है। फिर भी यह स्वीकार करना पड़ता है. कि उस समय प्रधानता पाली को ही थी। चाहे वह दो प्रकार की हो, चाहे चार प्रकार की। मैं पहले कह आया हूं कि पाली का दूसरा नाम मागधी भी है, यद्यपि यह कथन सर्वसम्मत नहीं, फिर भी अधिकांश भाषा मर्मज्ञ यही स्वीकार करते हैं। अर्द्धमागधी का नाम ही उसको मागधी का अन्यतम रूप बतलाता है, इसलिये अशोक के जो शिला लेख मागधी अथवा अर्द्धमागधी में लिखे माने जाते हैं, उनको पालीभाषा का रूपान्तर कहना असंगत न होगा। ऐसी अवस्था में शिला लेखों पर विचार करने से भी पाली को ही पहली प्राकृत मामना पड़ेगा।

पाली के अनन्तर हमारे सामने कुछ ऐसी प्राकृत भापायें आती हैं, जिनका नाम देश परक है। वे हैं, मागधी. अर्द्धमागधी, महाराष्ट्री और