पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४५१

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स्थान उन्होंने इन को ग्रहण किया है। उनकी कविता की भाषा ब्रजभाषा है परन्तु उन्होंने अन्य भाषा के शब्दों का व्यवहार भी स्वतंत्रता पूर्वक किया है। बिहारी लाल के भावों ही की नहीं, उनके शब्दों और वाक्यों तक को आवश्यकतानुसार ले लिया है। फिर भी यह स्वीकार करना पड़ेगा कि रसनिधि चाहे रसनिधि न हाे पर वे रसिक हृदय अवश्य थे। उनकी अनेक रचनायें सरस हैं और उनमें मधुरता पायी जाती है, उन्होंने फ़ारसी के कुछ ऐसे विषय भी ले लिये हैं जो अशिष्ट कहे जा सकते हैं। किन्तु उनकी मात्रा थोड़ी है। उनके कुछ पद्य नीचे दिये जाते हैं:—

१—रसनिधि वाको कहत हैं याही ते कर तार
रहत निरंतर जगत कों वाही के करतार।
२—हित करियत यहि भाँति साेंमिलियत है वहि भाँति
छीर नीर तैं पूछ लै हित करिबे की बात।
३—सुन्दर जोबन रूप जो बसुधा में न समाइ।
दृग तारन तिल बिच तिन्हैं नेहीं धरत लुकाइ।
४—मन गयंद छबि मद् छके तोर जंजीरन जात।
हित के झीने तार सों सहजै हो बँधि जात।
५—उड़ो फिरत जो तूलसम जहाँ तहाँ बेकाम।
एसे हरूए कौ धप्यो कहा जान मन नाम।
६—अदभुत गति यह प्रेम की लखा सनेही आइ।
जुरै कहूं, टूटै कहूं, कई गाँठ परि जाइ।
७—कहनावत मैं यह सुनी पोषत तन को नेह।
नेह लगाये अब लगी सूखन सगरी देह।
८—यह बूझन को नैन ये लग लग कानन जात।
काहू के मुख तुम सुनी पिय आवन की बात।