है कि उनका शब्द-विन्यास संयत नहीं। वे ऊटपटाँग बातें नहीं कहते, परंतु ऊटपटाँग शब्दों से अवश्य काम लेते हैं। उनके कुछ पद्य देखिये और उन शब्दों और वाक्यों पर भी विचार-दृष्टि डालते जाइये जो चिन्हित हैं:—
१— रहिये लटपट काटि दिन बरु घामे मां सोय।
छाँह न वाकी बैठिये जो तरु पतरो होय।
जो तरुं पतरो होय एक दिन धोखा दैहै।
जा दिन बहै बयारि टूटि तब जर से जैहै।
कह गिरधर कविराय छाँह मोटे की गहिये।
पाता सब झरि जाय तऊ छाया में रहिये।
२— साँई घोड़े आछतहिं गदहन पायो राज।
कौआ लीजे हाथ में दूरि कीजिये बाज।
दुरि कीजिये बाज राज पुनि ऐसो आयो।
सिंह कीजिये कैद स्यार गजराज चढ़ायो।
कह गिरधर कविराय जहाँ यह बूझि बड़ाई।
तहाँ न कीजे भोर साँझ उठि चलिये साँई।
३— साँई बेटा बाप के बिगरे भयो अकाज।
हरिनाकस अरु कंस को गयउ दुँहुन को राज।
गयउ दुहुँन को राज बाप बेटा में बिगरे।
दुसमन दावादार भये महिमंडल सिगरे।
कह गिरिधर कविराय युगन याही चलि आई।
पिता पुत्र के बैर नफा कहु कौने पाई।