पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४६१

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३—नसकट खटिया दुलकन घोड़।
कहै घाघ यह बिपति क ओर।
बाछा बैल पतुरिया जोय।
ना घर रहै न खेती होय।
४—बनियां क सखरज ठकुर क हीन।
बैद क पूत रोग नहिं चीन्ह।
पंडित चुप चुप बेसवा मइल।
कहै घाघ पाँचों घर गइल।
५—माघ क ऊषम जेठ क जाड़।
पहिले बरषे भरि गये गाड़।
कहै घाघ हम होब बियोगी।
कुआँ खोदि कै धोइ हैं धोबी।
६—मुये चाम से चाम कटावै।
सकरी भुइं महँ सोवै।
कहै घाघ ये तीनों भकुआ।
उढ़रि गये पर रोवै।
७—गया पेड़ जब बकुला बैठा।
गया गेह जय मुड़िया पैठा।
गया राज जहँ राजा लोभी।
गया खेत जहँ जामी गोभी।
८—नीचे ओद उपर बदराई।
कहै घाघ तब गेरुई खाई।
पछिवाँ हवा ओसावै जोई।
घाघ कहै घुन कबहुं न होई।