पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४७८

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प्रीति पयोनिधि मै धॅंसि कै हँसि के
           कढ़िया हँसी खेल नहीं फिर ।
०- ए ब्रज चन्द चलौ किन वा ब्रज
           लूकै बसन्त की ऊकन लागी ।
  त्यों पदमाकर पेखौ पलासन
            पावक सी मनो फूॅंकन लागी ।
  वै ब्रजनारी बिचारी वधू बन
            बावरी लौं हिये हूकन लागी ।
  कारी कुरूपकसाइनैं ये सु कुह,
            कुह कैलिया कूकन लागी ।

ग्वाल कवि मथुरा के रहने वाले ब्रह्मभट्ट थे। जगदम्वा का उनको इष्ट था। वे प्रतिभावान कवि माने जाते हैं। कहा जाता है किसी सिद्ध तपस्वी की कृपा से यह प्रतिभा उनको प्राप्त हुई थी। उनके बनाये ग्रंथों की संख्या साठमे ऊपर है. जिनमें अधिकतर गोपी-पचीसी.' 'गमाप्टक', 'कृष्णाप्टक ' और गणेशाष्टक आदि के समान छोटे छोटे ग्रन्थ हैं । उनके ' साहित्यानंद, साहित्य-दर्पण, साहित्य-दृंपण' इत्यादि पांच चार बड़े ग्रन्थ हैं। इनमें साहित्य के समस्त अंगों का विशेष वर्णन है वे राज दरबारों में घूमा करते थे। महाराज रणजीत सिंह से भी मिले थे। उन्हों ने इन्हें कुछ पुरस्कार भी दिया था । देशाटन अधिक करने के कारण उनको अनेक भाषाओं का ज्ञान था, उनमें उन्हों ने कविता भी की है। वेव्रज निवासीथे और ब्रजभाषापर उनको अधिका भी था। परंतु स्वतंत्र प्रकृतिके थे. इसलिये उनकी रचनामें व्रजभापाकं माथ खड़ी बोलीका मिश्रण भी है। उनकी कविता में जेसा चाहिये वेसा भावुकता भी नहीं । आन्तरिक प्रेरणाओं से लिखी गयी कविताओं में जो बल होता है. उनकी रचनाओं में वह कम पाया जाता है । उन्होंने बहुत अधिक रचनायें की हैं इस लिये सबमें कवि- कम्म का उचित निर्वाह नहीं हो सका. उनकी कविता में प्रवाह पाया