पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ४६५ )

जाता है, परन्तु यथेष्ट नहीं। उर्दू और फारसी शब्दों का प्रयोग उनकी कविता में प्रायः देखा जाता है । ज्ञात होता है कि उनपर उर्दू शायरी का भो कुछ प्रभाव था। उनके कुछ पद्य देखिये :-

१- मोरन के सोरन की नेकौ ना मरोर रही
      घोर हूं रही न घन वने या फरद कौ।
अंबर अमल सर सरिता बिमल भल
      ‌‌पंक को न अंक औ न उड़ानि गरद की।
ग्वाल कवि चित में चकोरन के चैन भये
      पंथिन की दृरि भई दूखन दरद की ।
जल पर थल पर महल अचल पर
      चांदी सी चमकि रही चाँदनी मरद की।

२- ग्रीषम की गजब धुकी है धूप धाम धाम
      गरमी झुको है जाम नाम अति पापिनी।
भीजे खस बीजन झले ई ना सुखात स्वेद
      गात ना सुहात बात दावा सी डरापिनी।
ग्वाल कवि कहे कोरे कुंभन ते कृपन ते
      लै लै जलधार बार बार मुख थापिनी ।
जब पियो तब पियो अब पिया फेर अब
      पीवत हूं पीवत मिटै न प्यास पापिनी ।

३- जेठ को न त्रास जाके पास ये बिलाम होंय,
      खस के मवास पै गुलाब उछज्यो करे
बिहा के मुरब्बे डब्बे चांदी के वरक भरे,
      पेठे पाग केवरे मैं बरफ पज्यो करै।