जाता है, परन्तु यथेष्ट नहीं। उर्दू और फारसी शब्दों का प्रयोग उनकी कविता में प्रायः देखा जाता है । ज्ञात होता है कि उनपर उर्दू शायरी का भो कुछ प्रभाव था। उनके कुछ पद्य देखिये :-
१- मोरन के सोरन की नेकौ ना मरोर रही
घोर हूं रही न घन वने या फरद कौ।
अंबर अमल सर सरिता बिमल भल
पंक को न अंक औ न उड़ानि गरद की।
ग्वाल कवि चित में चकोरन के चैन भये
पंथिन की दृरि भई दूखन दरद की ।
जल पर थल पर महल अचल पर
चांदी सी चमकि रही चाँदनी मरद की।
२- ग्रीषम की गजब धुकी है धूप धाम धाम
गरमी झुको है जाम नाम अति पापिनी।
भीजे खस बीजन झले ई ना सुखात स्वेद
गात ना सुहात बात दावा सी डरापिनी।
ग्वाल कवि कहे कोरे कुंभन ते कृपन ते
लै लै जलधार बार बार मुख थापिनी ।
जब पियो तब पियो अब पिया फेर अब
पीवत हूं पीवत मिटै न प्यास पापिनी ।
३- जेठ को न त्रास जाके पास ये बिलाम होंय,
खस के मवास पै गुलाब उछज्यो करे
बिहा के मुरब्बे डब्बे चांदी के वरक भरे,
पेठे पाग केवरे मैं बरफ पज्यो करै।