पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४८०

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ग्वाल कवि चंदन चहल में कपूर चूर,
चंदन अतर तर बसन खोज्यो करै ।
कंज मुखी कंज नैनी कंज के बिछौनन पै
कंजन की पंखी कर कंज ते कज्यो करै ।
४- गीधे गीधे तार कै मुतारि के उतारि के जू
धारि कै हिये में निज बात जटि जायगी।
तारि कै अवधि करी अवधि सुतारिबे की
बिपति बिदारिबे की फाँस कटि जायगी।
ग्वाल कवि सहज न तारियो हमारी गिनी
कठिन परैगी पाप-पांति पटि जायगी।
‌‌यातें जो न तारिहौ तुम्हारी सौंह रघुनाथ
अधम उधारिबे की साख घटि जायगी।
५- जाकी खूब खूबी खूब खूबन कै खूबी यहाँ
ताकी खूब ख़ूबी खूब ख़बी नभ गाहना।
जाकी बद जाती बद जाती इहां चारन में
ताकी बद जाती बद जाती ह्वां उराहना।
ग्वाल कवि येही परसिद्ध सिद्ध ते हैं जग
वही परसिद्ध ताकी इहाँ ह्वां सराहना ।
जाकी इहां चाहना है ताकी वहाँ चाहना है
जाकी इहाँ चाहना है ताकी उहाँ चाह ना।
६- चाहिये जरूर इनसानियत मानस को
नौबत बजे पै फेर भेर बजनो कहा।
जाति औ अजाति कहा हिंदू औ मुसलमान
जाते कियो नेह ताते फेर भजनो कहा।