पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४८२

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जाता है। इन्होंने साहित्य के सब अंगों पर रचनायें की हैं. रीति-सम्बन्धी मुन्दर ग्रन्थ भी बनाये हैं । 'कवि मुखमंडन, राधाकृष्ण बिलास, और 'चेत- चन्द्रिका, इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। इन्होंने अध्यात्म गमायण का अनुवाद भी किया है। सीताराम गुणार्णव' उसका नाम है । यह इनका प्रवन्ध ग्रन्थ है। इन्होंने एक बहुत बड़ा कार्य अपने पुत्र गोपीनाथ और शिष्य मणिदेव की सहायता से किया। वह है समस्त महाभारत और हरिवंश पर्व का व्रज- भाषामें सरस अनुवाद। यह अनुबखद काशीके महाराज उदित नारायण सिंह की बहुत बड़ी उदारताका फल है। यह कार्य लगभग पचास वर्ष में हुआ और इसमें उन्हों ने लाखों रुपये ब्यय किये । यह मुझे ज्ञात है कि महागज रणजीत सिंह ने भी समस्त महाभारत का अनुवाद सुन्दर व्रजभाषा में किसी कवि से कराया था। उन्होंने भी यह कार्य बहुत ब्यय स्वीकार करके किया था मैंने इस ग्रन्थ को पढ़ा और देखा भी है ! निज़ामाबाद निवासी स्व०- बाबा सुमेर सिंह के पास इसकी एक हस्त लिखित प्रति मौजूद थी । परन्तु अब वह अप्राप्य है । जहां तक मुझे ज्ञात है, यह ग्रन्थ मुद्रित भी नहीं हुआ परन्तु काशिराज के अनुवाद के तीन सँस्करण हो चुके हैं । इस ग्रन्थ की सुन्दर और मधुर रचना की बहुत अधिक प्रशंसा है। गोकुलनाथ ने ऐसे विशाल ग्रन्थ का अनुवाद अशिथिल और भावमयी मापामें करके बहुत बड़ा गौरव प्राप्त किया है । इतना बड़ा प्रबन्ध काव्य अब तक हिन्दो के किसी कवि अथवा महाकवि द्वारा नहीं लिया जा सका। सच बात तो यह है कि अकेले एक बहुत बड़ा प्रतिभाशाली कवि भी इस कार्य को नहीं कर सकता था। गोपीनाथ और मणिदेव भी गण्य कवियों में हैं । उनको पूर्ण सहायता से ही गोकुलनाथ को इतनी बड़ो कीर्ति प्राप्त होसकी । इस लिये वे भी कम प्रशंसनीय नहीं। इस अवनुाद को एक विशेषता यह है कि यदि यह न बता- या जाय कि तानों कवियों में से किस कवि ने किस पर्व का अनुवाद कि- या है तो ग्रन्थ की भाषा के द्वारा यह ज्ञात नहीं होसकता कि उसमें तीन कवियों की रचनायें हैं। वास्तव बात यह है कि तीनों ने इतनी योग्यता और विलक्षणता के साथ अनुवाद कार्य किया है कि भाषा में विभिन्नता आयी ही नहीं । ग्रन्थ को भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है. उसमें उर्दू .