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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४८८

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और मधुर शब्दविन्यास पर भी इनका अच्छा अधिकार देखा जाता है। कुछ रचनायें देखियेः-

१--सीख सिखाई न मानति है बरही
बससंग सखीन के आवैं ।
खेलत खेल नये जग में बिन काम
वृथा कत जाम बितावै ।
छोड़ि के साथ महेलिन को रहि कै ।
कहि कौन सवादहि पावै ।
कौन परी यह बानि अरी
नित नीर भरी गगरी ढरकावै ।
२ -चंचलता अपनी तजि के रस ही रम
सो रस सुन्दर पीजियो ।
कोऊ कितेक कहै तुमसों तिनकी
कही बातन को न पतीजियो ।
चोज चबाइनि के मुनियों न यही
इक मेरी कही नित कीजियो।
मंजुल मंजरी पै हो मलिंद
बिचारि के भारसॅंभारि कैदीजियो ।
३ -तड़पै तड़िता चहुं ओरन ते
छिति छाई समोरन की लहरैं ।
मदमाते महा गिरि सृंगन पै
गन मंजु मयूरन के कहरैं ।
इनकी करनी बरनी न परै
मगरूर गुमानन मों गहरै ।