नहीं करते थे। इनकी रचना में प्रवाह है और उसमें एक बड़ी ही मनोहर गति पायी जाती है। अन्य भाषा या उर्दू के शब्द भी कहीं कहीं इनके पधो में आ जाते हैं. परंतु वे नियमित होते हैं। उनकी व्यंजनायें मधुर हैं और भाव स्पष्ट । कहीं कहीं उत्तमोत्तम ध्वनियां भी उनमें मिल जाती हैं। अन्योक्ति की रचनायें जितनी सुन्दर और सरस इन्होंने की उसकी बहुत कुछ प्रशंसा की जा सकती है। इनके कुछ पद्य देग्वियेः --
१-छोड़् यो गृहकाज कुल लाज को समाज सबै
एक ब्रजराज मों कियोरी प्रीतिपन है।
रहत सदाई सुखदाई पद पंकज में
चंचरीक नाई भई छांड़ै नाहिं छन है।
रति-पति मृरति बिमोहन को नेमधरि
विष प्रेमरंग भरि मति को सदन है ।
कुंवर कन्हाई की लुनाई लखि माई मेरो
चेरो भयो चित औचितेरा भयोमन है ।
२-कोमल मनोहर मधुर सुरताल सने
नूपुर निनादनि सों कौन दिन बोलि हैं।
नीके मम ही के बुंद वृंदन सुमोतिन को
गहि के कृपा की अब चोंचन मोंतोलि हैं।
नेम धरि छेम मां प्रमुद होय दीन द्याल
प्रेम कोकनद बीच कबधौं कलोलि हैं। .
चरन निहारे जदुवंस राजहंस कब
मेरे मन मानस में मंद मंद डोलि हैं।
३-पराधीनता दुख महा सुखी जगत स्वाधीन ।
सुखी रमत सुक बनविषै कनक पींजरे दीन ।