पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५१४

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चक्रादिकन सानदै राखो कंकन फँसन निवारी।
नूपूर लेहु चढ़ाय किंकिनी खाँचहु करहु तयारी।
पियरो पट परिकर कटि कसिकै बाँधो हो बनवारी।
हमनाहीं उनमें जिनको तुम सहजहिँ दीन्हों तारी।
बानो जुगओ नीके अबकी हरीचंद की बारी।

एक उद को ग़ज़ल भी देखिये:—

दिल मेरा ले गया दग़ा कर के।
बेवफ़ा होगया वफ़ा कर के।
हिज्र की शब घटाही दी हमने।
दास्तां ज़ुल्फ की बढ़ा करके।
वक्त़े रहलत जो आये बालीं पर।
ख़ूब रोये गले लगा कर के।
सर्चे क़ामत ग़ज़बकी चालसे तुम।
क्यों क़यामत चले धपा कर के।
खु़द ब खु़द आज जो वह वुत आया।
मैं भी दौड़ा खु़दा खु़दा कर के।
दोस्तो कौन मेरी तुरवत पर।
रोरहा है रसा रसा कर के।
८— श्रीराधामाधव युगल प्रेम रसका अपने को मस्त बना।
पी प्रेम-पियाला भर भरकर कुछ इसमैका भी देख मज़ा।
इतबार न हो तो देख न ले क्या हरीचंद का हाल हुआ।
९— नव उज्ज्वल जलधार हार हीरक सी सोहति।
बिच बिच छहरति बूंद मध्य मुक्ता मनि पोहति।