पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५२१

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करौ पालना तुम लरिकन कै
पुरिखन बैतरनी देउ तारि।
तुम्हरे दूध दही की महिमा
जानें देव पितर सब कोय।
को अस तुम बिन दूसर जेहि
का गोबर लगे पवित्तर होय।

बुढ़ापा का वर्णन अपनी ही भाषा में देखिये किस प्रकार करते हैं

हाय बुढ़ापा तोरे मारे अब तो
हम नकन्याय गयन
करत धरत कछु बनतै नाहीं
कहाँ जान औ कैस करन।
छिन भरि चटक छिनै मां मद्धिम
जस बुझात खन होइ दिया।
तैसे निखवख देखि परत हैं
हमरी अक्किल के लच्छन।
अस कुछु उतरि जाति है जीते
बाजी बिरियां बाजी बात।
कैसेउ सुधि ही नाहीं आवत
मूंडुइ काहें न दै मारन।
कहा चहौं कुछु निकरत कुछु है
जीभ राँड़ का है यहु हालु।
कोऊ येहका यात न समझै
चाहे बीसन दाँय कहन।