पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५३६

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लिखे जाते हैं, परंतु खड़ी बोली में अब ये पुल्लिंग लिखे जाने लगे हैं, यद्यपि यह सिद्धान्त अभी सर्व-सम्मत नहीं है। संस्कृत का यह नियम है कि संयुक्त वर्णों के आदिका अक्षर दीर्घ समझा जाता है । और उसका उच्चारण भी वैसा ही होता है। ब्रजभाषा और अवधी में ऐसा सब अवस्थाओं में नहीं होता, विकल्प से होता है। किन्तु खड़ी बोली में उसको दीर्घही माना जाता है और प्रायः उसका उच्चारण भी संस्कृत के अनुसार ही होता है। जैसे 'रामप्रसाद,' देवस्वरूप', 'गर्वप्रहारी' इत्यादि। इन तीनों शब्दों में हिन्दी बोलचाल में 'राम' के म का. देव' के व का और गर्ब' के ब का उच्चारण बिशेष कर अवधी और ब्रजभाषा में ह्रस्व ही करेंगे। परंतु खड़ी बोली में उसका दीर्घ उचारण करने की चेष्टा की जाती है. यद्यपि अब तक यह प्रणाली हिन्दी भाषा में कुछ संस्कृत प्रेमियों ने ही ग्रहण की है। मेरा विचार है कि ऐसा करने से सरल हिन्दी भाषा में एक प्रकार की कठोरता आ जाती है। विशेष अवस्था अथवा विकल्प की बात दूसरी है। ब्रजभाषा और अवधी के नियमों के बहिष्कार के साथ साथ उनके सुन्दर और मधुर शब्दों का भी खड़ी बोली में परित्याग किया जारहा है । वरन यह कहना चाहिये कि लगभग परित्याग कर दियागया है । तो भी कुछ क्रियायें ऐसी हैं जो अबतक खड़ीबोली के गद्य पद्य दोनों में गृहीत हैं मैं समझता हूं ऐसा क्रियाओं का संयत प्रयोग अनुचित नहीं। जैसे 'लखना,' 'निहारना, निरखना' इत्यादि । ब्रजभाषा में 'दरसाना' एक किया है जो संस्कृत के 'दर्शन' शब्द का तद्भव रूप है। कुछ लोग खड़ी बोलचाल में इसको अब इस रूप में लिखना पसन्द नहीं करते । वे उसके स्थान पर 'दर्शाना' लिखते हैं । ब्रजभाषा और अवधी दोनों में न', 'नि' और 'न्ह' को शब्दों के अन्त में लाकर एक बचन से बहुबचन बनाया जाता है । खड़ी बोली में ऐसा नहीं किया जाता । उसने अपने गद्य की प्रणाली ही को स्वीकृत कर लिया है। विशेष विशेष बातें मैंने बतला दीं। इस विषय में और अधिक लिखना वाहुल्य होगा । खडी बोली की कविता में अधिकतर संस्कृत तत्सम शब्दों को ग्रहण कर लेने और उसको बिल्कुल गद्य की प्रणाली में ढाल देने का यह परिणाम हुआ है कि वह कर्कश हो गई है। उसमें जैसा चाहिये वैसा