पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५३९

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नेतृत्व में उस काल इस आन्दोलन की ओर विशेष आकर्षित था। इस लिये हिन्दी की समुन्नति के लिये उन दिनों जो साधन उपयुक्त समझे गये काम में लाये गये। नगर नगर में नागरी प्रचारिणी सभाओं का जन्म हुआ। नागरी के स्वत्व और उसके महत्व सम्बन्धी छोटी बड़ी अनेक पुस्तिकायें निकाली गईं। स्थान स्थान पर नागरी लिपि के प्रचार की महत्ता का राग अलापा गया और दूसरे यत्न जो उचित समझे गये काम में लाये गये। इस आन्दोलन से भी खड़ी बोली की कविता के आन्दोलन को बड़ी सहायता पहुँची क्योंकि विपक्षी हिन्दी भाषा पर जो दोषारोपण करते थे, उचित मात्रा में उनका निराकरण करना भी आवश्यक ज्ञात हुआ। उस समय ऐसी बातें अवश्य कही गयीं कि खड़ी बोली की कविता ऐसी हो जो उर्दू कविताओं से पूरी तौर पर टक्कर ले सके। इस अवसर से कुछ कट्टर खड़ी बोली के प्रेमियों ने लाभ उठा कर इस बात का अवश्य प्रचार किया कि जहाँ तक हो ब्रजभाषा के साथ खड़ी बोली का कोई सम्पर्क न रहे। इसको बहुत कुछ व्यवहारिक रूप भी दिया गया, परन्तु यह उत्तेजना के समय की बात थी। वह समय निकल जाने पर इस विषय में जो कट्टरता व्यापक रूप ग्रहण कर रही थी वह बहुत कुछ कम हो गयी और विवेकशील हृदयों से वह दुर्भाव निकल गया जो ब्रजभाषा से किसी प्रकार की सहायता न लेने के पक्ष में था। इस स्थिरता के समय में खड़ी बोलचाल की जो रचनायें हुई हैं, उनमें ब्रजभाषा के सरस शब्दों का प्रयोग देखा जाता है। परन्तु अब तक इस विषय में संतोष जनक प्रवृत्ति नहीं उत्पन्न हुई। मेरी सम्मति यह है कि अब वह समय आ गया है जब संयत चित्त में भाषा मर्मज्ञ लोग इस विषय पर विचार करें और खड़ी बोली की कविता को कर्कशता दोष से दूषित होने से बचावें।

इस खड़ी बोली के आन्दोलन के समय में जो कवि उत्पन्न हुये और कार्य्य क्षेत्र में आये उनकी चर्चा इस स्थान पर आवश्यक है, जिससे यह ज्ञात हो सके कि किस प्रकार खड़ी बोलो की कविता साहित्य-क्षेत्र में अग्रसर हुई। यहाँ यह बात स्मरण रखना चाहिये कि ब्रजभाषा के कवि