पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५४२

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९--शीतल मृदुल समीर चतुर्दिक
सुखित चित्त को करती है।
१०--कोमल कल संगीत सरस ध्वनि
तरु तरु प्रति अनुसरती है ।
११--सकल सृष्टि की सुघर सौम्य
छवि एकत्रित तहँ छाई है ।
१२--अति की बसै मनुष्यों ही के
मनमें अति अधिकाई है ।
१३--मनन वृत्ति प्रति हृदय-मध्य
दृढ़ अधिकृत पाई जाती है ।
१४--अति गरिष्ट साहसिकलक्ष्य
उत्साह अमित उपजाती है ।
१५-गति में गौरव गर्व दृष्टि में
दर्प धृष्टता युत धारी ।
१६--देखूं हूं मैं इन्हें मनुज कुल
नायकता का अधिकारी ।
१७-सदा बृहत व्यवसाय निरत
सुविचारवंत दीखैं सारे ।
१८--सुगम स्वल्प आचार शील
औ शुद्ध प्रकृति के गुण धारे ।
१९-कृषिकर भी प्रत्येक स्वत्व की
जाँच गर्व युत करता है ।