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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५४७

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लगा कर उसके 'र' को उड़ा देते हैं उनका कथन है कि जब 'औ' से और का भाव प्रगट हो जाता है तो संकीण स्थलों में उसका प्रयोग क्यों न किया जाय। मैं मी इस विचारसे सहमत हूं। उर्दू वाले लिखने को तो अपने पद्यों में 'और' लिख देते हैं, परन्तु अनेक स्थानों में उसका उच्चारण 'आ' ही कर लेते हैं। यह प्रणाली अच्छी नहीं, और न हिन्दी के लिये उपयुक्त है। इसलिये जहाँ तीन मात्रा वाला 'और' न प्रयुक्त हाे सके, द्विनात्रिक 'ओैं' का लिखना आक्षेप-योग्य नहीं।

८— पंक्ति सात और आठ में 'निकाई' और 'करार' शब्द आये है। 'निकाई' ठेठ व्रजभाषा है, 'करार' व्रजभाषा के नियमानुसार अनुप्रास के झमेले में पड़ कर कराई से बनाया गया है। पाठक जी के बाद के खड़ी वाली के कविगण इस प्रकार के प्रयोग को अच्छा नहीं समझते और वे व्रजभाषा के इस प्रकार के शब्दों से बचना चाहते हैं। परन्तु फिर भी 'निकाई', को निकाई पर कुछ लोग मुग्ध है। अबतक इसका अपनी रचनाओं में स्थान देते है। मेरा विचार है कि व्रजभाषा के ऐसे सरस शब्दाें का बहिष्कार उचित नहीं ऐसे शब्दों के ग्रहण करने से ही खड़ी वाेली का कर्कशता दूर होगी। 'कराई' को 'कराेर' करदेना मैं भी अच्छा नहीं समझता। ऐसे परिवर्तनों में बचना चाहिए यदि भाबुकता भी साथ दे।

९— दसवीं पंक्तिमें अनुसरनी है और अठारहवीं पंक्तिमें 'धारे' क्रियाओं का प्रयोग है। न तो खड़ी बोली में 'अनुसरनी' कोई क्रिया है न 'धरना'। खड़ी बोलचाल में 'धरना' के स्थान पर रखना का प्रयास होता है। फिर भी उन्होंने इन क्रियाओं का प्रयोग अपनी खड़ी बोली की रचना में किया है। धारना क्रिया के रूपों का व्यवहार अब तक खड़ी बोल चाल की कविता में हो रहा है २१ वीं आर २२ वीं पंक्तियाें में 'जावेगा', 'पावेगा' लिखा गया है। ये दाेनाें क्रियायें हिन्दी की है और अब तक इनका प्रयोग सो खड़ी बाेली की रचना में हो रहा है। अंतर इतना ही है कि 'जावेगा', 'पावेगा' अथवा 'जाएगा', 'पाएगा' लिखा जाना है। 'जावेगा', 'पावेगा' के विषय में मुझ काे कुछ अधिक नहीं कहना है। यदि थोड़ा