पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५५१

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आप की ही ऐसी पहली ग्चना है, जिसमें समाज को उसके अन्ध विश्वासों के लिये गहरी फटकार मिलती है। इस विषय में हिन्दी साहित्य क्षेत्र में कबीर के बाद इनका ही स्थान है। मुँहफट और अक्खड़ भी ये वैसे ही हैं। जब आवेश में आते हैं तो इनके उद्गार में ऐसे शब्द भर जाते हैं जिन से एक प्रकार का स्फोट सा होता ज्ञात होता है। शर्मा जी हिन्दी संसार के एक ख्याति प्राप्त और मान्य कवि हैं। इनको गुण ग्राहकों ने पदक और उपयुक्त पदवियां भी प्रदान की हैं। इनका व्रजभाषा का एक पद्य नीचे लिखा जाता है:

१— मंगल करन हारे कोमल चरन चारु
मंगल से मान मही गोद में धरत जात।
पंकज की पाँखुरी से आँगुरी अँगूठन की
जाया पंचबान जो को भँवरी भरत जात।
शंकर निरख नख नग से नखत स्रेनी
अंबर सों छूटिं छूटि पाँयन परत जात।
चाँदनी में चाँदनी के फूलन की चाँदनी पै
हौले हौले हंसन की हाँसी सी करत जात।

एक पद्य खड़ी बोल चाल का देखियः—

२— कज्जल के कूट पर दीप शिखा सोती है
कि श्याम घन मंडल में दामिनीकी धारा है।
यामिनी के अंक में कलाधर की कोर है।
कि राहु के कबंध पै कराल केतु तारा है।
शंकर कसौटी पर कंचन की लीक है
कि तेज ने तिमिर के हिये में तीर मारा है।
काली पाटियों के बीच माेहिनी की माँग है
कि ढाल पर खाँड़ा कामदेव का दुधारा है।