पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५५४

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कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान है । उन्होंने कई अंग्रेज़ी नाटकों का अनुवाद उर्दू में भी किया है। ब्रजभाषा को उन्हों ने यह सेवा को कि "मेघदूत" "ऋतु-संहार' 'रघूवंश' का पद्यानुवाद सरल भाषा में कर के उसे सौंपा। संस्कृत के 'मालती माधव' 'उत्तर गम चरित्र' आदि नाटकों का अनुवाद भी गद्यपद्यमयी भाषा में किया। आप गद्य पद्य दोनों लिखने में अभ्यस्त हैं। अपनी वृद्धावस्था में भी कुछ न कुछ हिन्दी-सेवा करते ही रहते हैं । आप के पद्यके कुछ नमूने नीचे दिये जाते हैं जो ग्घुवंशके पद्यानुवादसे लिये गये हैं:-

भये प्रभात धेनु ढिग जाई ।
पूजि रानि माला पहिराई ।
बच्छ पियाइ बाँधि तब राजा।
खोल्यो ताहि चरावन काजा।
परत धरनि गा चरन सुहावन ।
सो मगधूरि होत अति पावन ।
चली भूप तिय सोई मग माहीं।
स्मृति, श्रुति अर्थ संग जिमिजाहीं।
चौसिंधुन थन रुचिर बनाई।
धरनिहि मनहुँ बनी तहँ गाई।
प्रिया फेरि अवधेश कृपाला।
रक्षा कीन्ह तासु तेहि काला।
कबहुँक मृदु तृन नोचि खिलावत।
हाँकि माछि कहुँ तनहिँ खुजावत।
जोदिसि चलत चलत सोई राहा।
एहि विधि तेहि सेवत नर नाहा।

राय देवीप्रसाद पूर्ण' कानपुर के एक प्रसिद्ध वकील थे।

आपने