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मृदु मंजु रसाल मनोहर मंजरी
मोर पखा सिर पै लहरैं।
अलबेली नवेलिन बेलिन में
नव जीवन ज्योति छटा छहरैं।
पिक भृंग सुगुंज सोई मुरली
सरसों सुभ पीत पटा फहरैं।
रसवंत विनोद अनंत भरे
व्रजराज बसंत हिये बिहरैं।
श्री राधाबर निज जन बाधा सकल नसावनि।
जाकौ व्रजमन भावन जो व्रजकौ मन भावनि।
रसिक सिरोमनि मन हरन निरमल नेह निकुंज।
मोद भरन उर सुख करन अविचल आनँद पुंज।
रँगीली साँवगे
कंस मार भूभार उतारन खल दल तारन।
विस्तारन विज्ञान विमल स्रुति सेतु सँवारन।
जन मन रंजन सोहना गुन आगर चित चोर।
भवभय भंजन मोहना नागर नंद किसोर।
गयो जब द्वारिका
पावन सावन मास नई उनई घन पाँती।
मुनि मन भाई छई रसमयी मंजुल काँती।
सोहत सुन्दर चहुँ सजल सरिता पोखर ताल
लोल लोल तहँ अति अमल दादुर बोल रसाल।
छटा चूई परे।