पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६०४

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रक्खें, छायावाद की कविता लिखें और यह जानें भी नहीं कि कविता किसे कहते हैं, धूल उड़ावें प्राचीन कविवरों की और करने बैठे कवि-कर्म्म की मिट्टी पलीद, तो बताइये हमारी क्या दशा होगी? हम स्वयं तो मुंह की खायेंगे ही, छायावाद की आँखें भी नीची करेंगे। आजकल छायावाद के नाम पर कुछ उत्साही युवक ऐसी ही लीला कर रहे हैं। मेरी उनसे यह प्रार्थना है कि यदि उनमें छायावाद का सच्चा अनुराग है तो अपने हृदय में वे उस ज्योति की छाया पड़ने दें, जिससे उनका मुख उज्ज्वल हो और 'छायावाद' का सुन्दर कविताक्षेत्र उद्भासित हो उठे। मेरा विचार है कि छायावाद कविता-प्रणाली का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। जैसे पावस का तमोमय पंकिल काल व्यतीत होनेपर ज्योतिर्मय स्वच्छ शरद ऋतु का विकास होता है वैसे ही जो न्यूनतायें छायावाद के क्षेत्र में इस समय विद्यमान हैं वे दूर होंगी और वह वांछनीय पूर्णता को प्राप्त होगी। किंतु यह तभी होगा जब युवक-दल अपनी इष्ट-सिद्धि के लिये भगवती वीणापाणि की सच्ची आराधना के लिये कटिबद्ध होगा।

किसी किसी छायावादी कवि का यह विचार है कि जो कुछ तत्व है वह छायावाद की कविता ही में है। कविता-सम्बन्धी और जितने विभाग हैं वे तुच्छ ही नहीं, तुच्छातितुच्छ हैं और उनमें कोई सार नहीं। अपना विचार प्रगट करने का अधिकार सब को है, किन्तु विचार प्रगट करने के समय तथ्य को हाथ से न जाने देना चाहिये। जो छायावाद के अथवा रहस्यवाद के आचार्य कहे जाते हैं, क्या उन्हों ने आजीवन रहस्यवाद की ही रचना की? प्राचीन कवियों में ही हम प्रसिद्ध रहस्यवादी कबीर और जायसी को ले लें तो हमें ज्ञात हो जायेगा कि सौ पद्यों में यदि दस पाँच रचनायें उनकी रहस्यवाद की हैं तो शेष रचनायें अन्य विषयों की। क्या उनकी ये रचनायें निन्दनीय अनुपयुक्त तथा अनुपयोगी हैं। नहीं, उपयोगी हैं और अपने स्थान पर उतनी ही अभिनन्दनीय हैं जितनी रहस्यवाद की रचनायें। एक देशीय ज्ञान अपूर्ण होता है और एकदेशीय विचार अव्यापक। जैसे शरीर के सब अंगों का उपयोग अपने अपने स्थानों पर