पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६०९

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यदि संसार भर के मनुष्य प्रेम-पात्र हैं तो भरत-कुमार स्नेह भाजन क्यों नहीं? क्या उनकी गणना विश्व के प्राणियों में नहीं है? यदि सत्य का प्रचार किया जा रहा है, प्रेम की दीक्षा दी जा रही है, विश्व-बंधुत्व का राग अलापा जा रहा है, तो क्या भारतीय जन उनके अधिकारी नहीं। जो अपना है, जिस पर दावा होता है उसी को उपालम्भ दिया जाता है। जिससे आशा होती है, उसी का मुंह ताका जाता है। मैंने जो कुछ यहां लिखा है वह ममता-वश होकर, मत्सर से नहीं। मैंने इसकी चर्चा यहां इस लिये की कि यदि छायावाद की रचना ही सर्वे सर्वा है, तो इसमें इन भावों का सन्निवेश भी पर्य्याप्त मात्रा में होना चाहिये, अन्यथा हिंदी- साहित्य-क्षेत्र में एक ऐसी न्यूनता हो जावेगी, जो युवकों के एक उल्लेख- योग्य दल को भ्रान्त ही नहीं बनावेगी, देश के समुन्नति-पथ में भी कुसुम के बहाने वे कंटक बिछावेगी जो भारतीय हित-प्रेमिक पथिकों के लिये अनेक असमंजसों के हेतु होंगे। मैंने जो विचार एक सदुद्देश्य से यहाँ प्रकट किये हैं यदि कार्य्यतः उनको भ्रान्त सिद्ध कर दिया जावेगा तो मैं अपना अहोभाग्य समझूंगा।

छायावाद की कविता पर मैंने अपने विचारानुसार जो प्रकाश डाला, सम्भव है उस का कुछ अंश रंजित हो। परन्तु मैंने सत्य बात को प्रकट करने ही की चेष्टा की है। सम्भव है, अपेक्षित ज्ञान न होने के कारण मैं उसके सव्वंशिका परिचय न दे सका होऊँ। परन्तु जो कुछ मैंने लिखा है, आशा है उससे उसकी प्रणालीका कुछ न कुछ ज्ञान अवश्य पाठकोंको होगा। अब मैं उन लोगों की चर्चा करना चाहता हूं जो उसके प्रसिद्ध कवि और उद्भावक हैं। उनकी रचनाओं को पढ़ कर आशा है, आप लोगों का ज्ञान छायावाद के विषय में और अधिक हो जायेगा। छायावाद के कवियों की बहुत बड़ी संख्या है। परन्तु उनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिन्होंने थोड़े ही दिन से इस क्षेत्र में पदार्पण किया है। मैं पहले उन्हीं लोगों के विषय में कुछ लिखूंगा जिन्हों ने प्रसिद्ध प्राप्त कर ली है और जो छायावाद के मान्य कवि हैं। इसके उपरान्त कुछ ऐसे लोगों की भी चर्चा करूंगा, जो छायावाद के क्षेत्र में बहुत कुछ अग्रसर हो चुके हैं:-