पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६२३

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जावे। मैं यह नहीं कहता कि नये मुहावरे नहीं बनते या नहीं बनाये गये। मेरा कथन इतना ही है कि मुहावरों की रचना के भी नियम हैं। उर्दू में कितने ही मुहावरे बन गये हैं, जैसे हवा बाँधना', हवा हो जाना', 'हवा बिगड़ जाना' इत्यादि। किन्तु बिचारना यह है कि ये मुहावरे बने कैसे? ये मुहावरे बोलचाल में आकर बने और फिर कवियों और लेखकों द्वारा गृहीत हुये। प्रमाण इसका यह है कि हिन्दी के जितने मुहावरे हैं, वे सब प्रायः तद्भव शब्दोसे बने हैं। हिन्दीका कोई मुहावरा प्रायः संस्कृत शब्दोंसे नहीं बना है। कारण इसका यह है कि जनता की बोलचाल ही मुहावरों को जन्म देती है। संस्कृत के तत्सम शब्द कभी जनता की बोलचाल में नहीं थे। इसलिये मुहावरों में वे न आ सके। उर्दू के मुहावरों की भी उत्पत्ति ऐसे ही हुई है। यही प्रणाली ग्रहण कर यदि नये मुहावरे बनाये जाँय तो कोई आपत्ति नहीं। अन्यथा पद्यविभाग जटिल से जटिलतर हो जावेगा। दूसरी बात यह कि जब गद्य में इस प्रकार के मुहावरे नहीं लिखे जाते तो पद्य में उनका प्रयोग कहाँ तक संगत है। विशेषकर उस अवस्था में जब गद्य और पद्य की भाषा की एकता का राग अलापा जाता है। मैं यह जानता हूं कि गद्य की भाषा से पद्य की भाषा का कुछ अन्तर होता है। किन्तु इसके भी कुछ नियम हैं। उन नियमों की रक्षा के विषय में ही मेरा निवेदन है।

आजकल यह भी देखा जाता है कि कुछ ऐसे समस्त शब्द बना लिये जाते हैं जो संस्कृत के नियमानुसार अशुद्ध तो हैं ही हिन्दी भाषा के नियमानुसार भी वे न तो गृहीत होने योग्य हैं, न उनका इस प्रकार प्रयोग होना उचित है। ऐसे समस्त शब्द भी कुछ अंगरेज़ी प्रणाली के अनुसार बनाये जाते हैं, और कुछ कवि की अहमन्यता अथवा प्रमाद के परिणाम होते हैं। ऐसे शब्दों या वाक्यों का अर्थ इतना दुर्बोध हो जाता है कि उसके कारण प्रांजल से प्रांजल पद्य भी जटिल बन जाते हैं। यदि कहा जाय 'उन्मत्त क्रोध', 'सरसईर्षा', 'ललित आवेश', 'विहँसित कन्दन', 'रुदित हँसी', 'खिलखिलाती चिन्ता', 'नाचती निद्रा', 'जागती नींद', 'उड़ता हृदय', 'सोता कलेजा' तो बतलाइये, इन शब्दों का क्या अर्थ होगा