पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६४९

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अनुमानी हिन्दी में बनाई। उन दोनों के सामने उर्दू का आदर्श था,इसलिये उनकी भाषा विशेष परिमार्जित और खड़ी बोली के रंग में ढली हुई है,परन्तु ये उर्दू के आदर्श को त्याग कर चले, इसलिये वास्तविक खड़ी बोली न लिख सके। उर्दू शब्दों को भी बचाया. इसलिये आवश्यकता से अधिक ब्रजभाषा के शब्द उनको रचना में घुस गये । अवतरणों के उन शब्दों को देखिये जो चिन्हित हैं। आज का समय होता तो संभव था कि इन तीनों को एक दूसरी की पुस्तक देखने के लिये मिल गयी होती और इस प्रकार एक दूसरे की प्रणाली से वे कुछ सहायता प्राप्त कर सकते। परन्तु उस समय तो यह भी संभव नहीं था, अपने जीवन में वे एक दूसरे का नाम भी न सुन सके होंगे। जिस समय प्रेम सागर लिखा गया,उस समय वहीं बागबहार नामक उर्दू ग्रंथ भी लिखा गया,उसमें भी अनुप्रासों को अधिकता है। उर्दू में यह प्रणाली फ़ारसी से आई है,फारसी में अरबी से। मैं समझता हूं प्रेम सागर पर अनुप्रास के विषय में बागो बहार का प्रभाव पड़ा है.वह भी गद्य ग्रंथ ही है। या यह कहें कि उक्त ग्रंथ को स्पर्धा से ही प्रेम सागर की भाषा सानुप्रास है। विशुद्ध संस्कृत और व्रजभाषा शब्दों के आधार पर प्रेम सागर का निर्माण खड़ी बोली में करके लल्लु लाल ने उस प्रवाह में परिवर्तन उपस्थित करने का प्रयत्न किया जो अब तक फ़ारसी शब्दों के व्यवहार के प्रतिकूल नहीं था। मुंशी सदा सुख लाल की भाषा कुछ पंडिताऊ है.और कुछ अस्त व्यस्त । इंशा अल्लाह खां की भाषा का ढाँचा उद्र है। लल्लू लाल का ढंग इन दोनों से भिन्न है,उनकी भाषा चलती और हिन्दी के ढंग में ढली हुई है. और यहो उनको प्रणाली को विशेषतायें हैं ।

सदल मिश्र कलकत्ते के फ़ोर्ट विलियम कालेज में लल्लू लाल के साथ अध्यापक थे। जान गिलक्रिस्ट महाशय के आज्ञानुसार उन्होंने'नासिकेतोपाख्यान' नामक पुस्तक तैयार की । उनकी भाषा देखिये:-

१-तब नृप ने पंडितों को बोला दिन बिचार बड़ी प्रसन्नता से सब