पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६७२

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अपनी मां को आंख के एक क़तरा आंसू की कीमत मैं बादशाहत से भो बढ़ कर मानता हूं । रेणुका के अश्रुपात हो ने परशुराम से इक्कीसबार क्षत्रियों का संहार कराया। कितने ऐसे लोग भी हैं जिन्हें आंसू नहीं आता। इसलिये जहाँ पर बड़ो ज़रूरत आंसू गिराने की हो तो उनके लिये प्याज़ का गट्ठा पास रखना बड़ी सहज तरकोब निकाली गयी। प्याज़ ज़रा सा आंख में छू जाने से आंसू गिरने लगता है।

 "किसी को बैंगन बावले किसी को बैंगन पत्थ" बहुधा आंसू का गिरना भलाई और तारोफ़ में दाखिल है। हमारे लिये आंसू बड़ी बला है। नजले का जोर है, दिनरात आंसू टपकता है, ज्यों ज्यों आंसू गिरता है त्यो त्यों बीमारी कम होती जाती है। सैकड़ों तदबीरें हम कर चुके आंसू का टपकना बंद न हुआ । क्या जाने बंगाल की खाड़ीवाला समुद्र हमारे कपार में आकर भर रहा है। आंख से तो आंसू चला ही करता है, आज हमने लेख में भी आंसू ही पर कलम चला दी, पढ़नेवाले इसे निरी नहूसत की अलामत न मान हमें क्षमा करेंगे।
 २- दर्शन (फ़िलासफी) का अनुशीलन करते करते जिनका मस्तिष्क्क यहाँ तक परिष्कृत और बुद्धि इतनी पैनी हो जाती है कि उनकी बहस और तकरीर के मुकाबले कोई बात कभी उनके अविश्वासी चित्त में स्थान पा ही नहीं सकती............।"
 
 ३--' यद्यपि 'ब्रेन वर्क' मस्तिष्क का काम और शारीरिक कामों की अपेक्षा अधिक योग्यता प्रकट करता है किन्तु कसौटी के समय परख केवल दिल को को जातो है।"
 उक्त अवतरणों के रेखांकित शब्दों पर विचार कीजिये। वे सब के सब फारसो, अरबी के शब्द हैं। वे बोलचाल में गृहीत हो गये हैं । अत-एव हिन्दी गद्य लिखने में उनका प्रयोग होना अनुचित नहीं। भट्ट जी'हिन्दी प्रदीप.' नामक मासिक पत्र के सञ्चालक और सम्पादक भी थे ।