पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(६६८)

की ताप से पिघलता पिघलता अति सूक्ष्म हो के आकाश. में मेघाकार दिखाई देता है । जब उसको ऊपर शीतल वायुमिले तो घृतकी नाई जम के भारी हो जाता और अपान वायु के बेग से नीचे गिरने लगता है। यदि ऊपर शीतल वायु बहुत लगे तो अत्यंत गरिष्ट हो के ओले बरसने लगते हैं।"

सत्यामृतप्रवाह
 

५-श्रीमान पं० मधुसूदन गोस्वामी हिन्दू-शास्त्र के पारंगत विद्वान और हिन्दी भाषा के प्रोढ़ लेखक थे। उन्हों ने ग्रंथ भी बनाये हैं. किन्तु अधिकांश निबन्ध ही उनके लिखे हैं जो प्रायः पत्र और पत्रिकाओं में मुद्रित होते रहते थे। वे प्रचार के लिये बाहर आते जाते नहीं देखे गये. लेखा के द्वारा ही उन्होंने धर्म की अच्छी सेवा की है। जितने धर्म विषयक लेख उन्हों ने लिखे हैं वे पठनीय और आदरणीय हैं। आलाराम सागर सन्यासो भी उस काल के एक अच्छे प्रचारका में थे। उन्होंने विशेषतः इस विषय पर लेख लिखे हैं कि सिक्खों के १० गुरु हिन्दू धर्म के रक्षक थे और सदा उन्होंने हिन्दूधर्म भावों का हो प्रचार किया है । वे हिन्दू और सिक्खों में सद्भाव स्थापन के बड़े उद्योगी थे। इस विषय के हैक्ट और छोटे छोटे ग्रंथ लिख कर उन्होंने उनका प्रचार अधिकता से किया था। इन सब ग्रंथों और टैक्टों को उन्होंने अधिकांश हिन्दो भाषा ही में लिखा था। हिन्दी भाषा प्रचार के लिये भी वे बहुत उत्सुक रहते थे ।

६- हिन्दी भाषा के प्रचार के लिये आर्य समाजियों ने भी इस समय बड़ा उद्योग किया था। पंजाब प्रांत में हिन्दी भाषा के प्रचार का श्रेय उन्हीं को प्राप्त है। इस समय आर्य समाज में भी संस्कृत के धुरंधर विद्वान थे जो धर्म के साथ २ हिन्दो-भाषा का प्रचार भी करते थे। इन में से स्वामी दर्शनानन्द, स्वामी श्रद्धानंद. पं० तुलसीराम, पं. गणपति शास्त्री. पं० राजाराम और श्री युत आर्य मुनि का नाम विशेष उल्लेावनीय है। स्वामी दर्शनानन्द ने पत्र और पत्रिकायें भी निकाली और धार्मिक विचारों पर उत्तमोत्तम ग्रंथ भो लिखे। उनके ग्रंथ प्रौढ़ विचारों से पूर्ण हैं उनमें दार्शनिकना भो पाई जाती है। ये समस्त ग्रंथ अधिकांश हिन्दी