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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६८५

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( ६७१ ) पुरुष थे, इस लिये सामयिकता के विशेष अनुरागी थे। उन्हों ने विदेश पुरुष, इस लिये सामयिकता के विशेष अनुरागी थे। उन्हों ने विदेश यात्रा और विधवा विवाह मण्डन पर भावमयी पुस्तकें लिखी हैं। आप जैसे गद्य रचना में निपुण थे वैसे ही पद्य रचना पटु भी। आप ने 'उत्तराद्ध' भक्त माल' नामक एक सुन्दर ग्रंथ पद्य में बनाया है, उसमें नाभा जी के वाद के भक्तों को चर्चा की है रचना वैसी हो सुन्दर, सरस और ललित है जैसी नाभा जी रचित भक्त माल की। आप ने ब्रजप्रान्त में और युक्तप्रान्त के पश्चिमी जिलों में हिन्दी भाषा के प्रचार का बड़ा उद्योग किया था। जिस समय कचहरियों में हिन्दी भाषा के ग्रहण किये जाने का आन्दोलन पूज्यपाद मालवीय जी के नेतृत्व में चल रहा था, उस समय आप भी उसके एक विशेष सहायक थे । आप ने हिन्दी में कई ग्रन्थ की रचनायें की हैं जो मनोहर एवं मधुर हैं। उनमें सामयिकता भो पाई जाती है। उनके गद्य और पद्य का एक उदाहरण देखियेः

  'इसका नाम भारतेन्दु, रखने का कारण जानने के लिये शायद आप लोग उत्सुक होंगे, क्योंकि इस रूप तथा इस आकारके पत्र के लिये तनिक यह नाम अयोग्य सा मालूम होता है। परन्तु यह धृष्टता केवल इसे पूज्य पाद भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का स्मारक स्वरूप बनाने के लिये की गई है। यों तो उनकी अटल कीर्ति जब तक हिन्दी भाषा को एक भी पुस्तक रहेगी तब तक इस भूमण्डल में वर्तमान रहेगी, तथापि इसी बहाने उनके प्रातः स्मरणीय नाम के उच्चारण का सौभाग्य प्राप्त होगा।”
  १० -अलीगढ़ निवासी बाबू तोताराम बी० ए० बाबू हरिश्चन्द्र के समकालीन हिन्दी सेवकों में हैं। उन्हों ने भी हिन्दी के प्रचार में बड़ा उद्योग किया था । 'भारत-वन्धु' नामक एक साहित्यिक पत्र उन्हों ने निकाला था, कुछ ग्रन्थों की भी रचनायें की थीं। जिनमें 'केटो कृतान्त'नाटक और 'स्त्री 'सुवोधिनी' प्रसिद्ध हैं। इनकी गद्य रचना साधारण है,नाटक और 'स्त्री 'सुवोधिनी' प्रसिद्ध हैं। इनकी गद्य रचना साधारण है,परन्तु उसमें नियमबद्धता पाई जाती है । इनकी गद्य रचना का एक अंश देखिये:-
  "कौन नहीं जानता ? परन्तु इस नीच संसार के आगे कीर्ति केतु