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के चारों ओर उच्च-पंजाबी भाषा बोली जातो है। यद्यपि स्थान स्थान पर उसका कुछ परिवर्तित रूप मिलता है, पर वास्तव में भाषा में कोई विशेष अन्तर नहीं है। 'डोगरी' जम्मूस्टेट और कुछ परिवर्तन के साथ कांगड़ा जिले में बोली जाती है। पंजाबी साहित्य कम है । दोनों ग्रन्थसाहब यद्यपि गुरुमुखी अक्षरों में लिखे गये हैं, परन्तु उनकी भाषा पश्चिमी हिन्दी है, कोई कोई रचना ही पंजाबी भाषा में है। पंजाबी भाषा में सँस्कृत शब्दों का बाहुल्य नहीं है, यद्यपि शनैः शनैः उसमें संस्कृत तत्सम का प्रयोग अधिकता से होने लगा है।
पंजाबियों की यह सम्मति है कि अमृतसर जिले की माझी बोली ही ऐसी है, जिसमें पंजाबी का ठेठ रूप पाया जाता है। मुसल्मानों ने गुजरातऔर गुजरानवाला में बोले जानी वाली पंजाबी के आधार से अपने साहित्य की रचना की है। इनकी भाषा हिन्दू लेखकों की अपेक्षा अधिक ठेठ है । इनकी भाषा में पश्चिमी हिन्दी का रंग भी पाया जाता है, इस भाषा में अब भी साहित्य की रचना होती है, इस मिश्रित भाषा का पुराना साहित्य भी मिलता है।
मौलवियाें और पादरियों ने भी अपने धर्म का प्रचार करने के लिये पंजाबी भाषा में रचना की है, इन में से अबदुल्ला आसो का बनाया हुआ 'अनवाअ बाराँ' बहुत प्रसिद्ध है।
मुसल्मानों ने कुछ जंगनामे और यूसुफ़जुलेखा की कहानी भी पंजाबी भाषा में पद्यवद्ध की है। हीरराँझे को प्रसिद्ध कथा भी पंजाबी पद्य का सुन्दर ग्रन्थ है, इसकी रचना सय्यद वारिस शाह ने की है, इसकी भाषा ठेठ पंजाबी समझी जाती है।
पंजाबी के दक्षिण में ‘राजस्थानी' हे, राजस्थानी द्वारा हिन्दी दक्षिण पश्चिम में फैली, हिन्दी ‘राजस्थानी' के क्षेत्र में पहुँच कर गुजरात के समुद्र तक बढ़ी और वहाँ गुजराती बन गई । इसीलिये राजस्थानी और गुजराती बहुत मिलती है। राजस्थानी में कई भाषायें अथवा बोलियां हैं, परन्तु उनके चार मुख्य विभाग हैं। उत्तर में 'मेवाती' दक्षिण पूर्व में 'मालवी'