पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७०३

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है कि न्यूनताओं की पूर्ति यथा सम्भव शोव होगी और उपादेय ग्रंथों की कमी न रह जायगी। मैं यहाँ पर प्रस्तुत साहित्यिक ग्रंथों का थोड़े में दिग्दर्शन करूंगा. इसके द्वारा यह अनुमान हो सकेगा कि हिन्दी साहित्य के विकास की प्रगति क्या है। सम्भव है कि किसी उपयोगी ग्रंथ की चर्चा छूट जाये किन्तु ऐसा अनभिज्ञता के कारण ही होगा। कुछ सहृदयों का जीवन ही साहित्यिक होता है, वे साहित्य सेवा करने में ही आनन्दानुभव करते हैं, उनको इस प्रकृति के कारण आज कल हिन्दी साहित्य उत्तरोत्तर उत्तमोत्तम प्रथा से अलंकृत हो रहा है। प्रचार काल से आज तक उन लोगों ने इस क्षेत्र में जो कार्य किया है, वह बहुत उत्साह वर्द्धक और बहुमूल्य है। अब से पचास बर्ष पहले साहित्य के दशांग पर लिखे गये गध ग्रन्थों का अभाव था, परन्तु इस समय उसकी बहुत कुछ पूर्ति हो गई है। ऐसे निवन्ध जो आत्मिक प्रेरणा से लिखे जाते हैं, और जिनमें भावात्मकता होती है. पहले दुर्लभ थे, किन्तु इन दिनों उनका अभाव नहीं है। कवि और कविता सम्बन्धी आलोचनात्मक निबंध कुछ दिन पहले खोजने से भी नहीं मिलते थे, परन्तु आज उधर भी दृष्टि है। कुछ ग्रंथ लिखे गये है. और कुछ विद्वानों की उधर दृष्टि है। जिन्होंने इस क्षेत्र में काय्य किया है और जो आज भी स्वकत्तव्य पालन में ग्त हैं - अब मैं उनकी चर्चा करूंगा। जिससे आप वर्तमानकालिक साहित्य भाण्डार की वृद्धि के विषय में कुछ अनुमान कर सके।

   पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी ने  अनेक साहित्यिक ग्रन्थों की रचना की है। वे जैसे बहुत बड़े लेखक हैं वैसे ही बहुत बड़े समालोचक भी। उन्हों ने हिन्दी  साहित्य भाण्डार को  बहुमूल्य ग्रन्थ गन्न  दिये हैं और अपनी निर्भीक समालोचना से हिन्दी भाषा को परिष्कृत भी बनाया है । उनके रचे  कई  सुन्दर ग्रन्थ  हैं। जिनमें 'वेकन  विचार  ग्नावली', 'स्वाधीनता','साहित्य-सीकर','ग्सज्ञ-जन'. हिन्दी  भाषा  की उत्पत्ति', कालिदास की  निरंकुशता' आदि  ग्रन्थ उल्लेखनीय  हैं ।
   बाबू श्याम  सुन्दर  दास  बी०ए०  नागरी प्रचारिणी  सभा के जन्मदाताओं  में अन्यनम हैं। हिन्दी गद्य  के विकास में तथा उसकी वर्तमान