पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७०४

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कालीन उन्नति में भी उनका हाथ है। हिन्दी के जितने ग्रन्थ आप ने सम्पादन किये और लिखे हैं उनकी बहुत बड़ी संख्या है। साहित्य के अनेक विषयों पर आपने लेखनी चलाई है। आप की लिखी गद्य-शैलो का चमत्कार यह है कि उसमें प्रौढ़लेखनी को कला दृष्टिगत होती है। हां उसमें मस्तिष्क मिलता है, हृदय नहीं। रूक्षता मिलती है, सरसता नहीं। हाल में आप का हिन्दी भाषा और साहित्य' नामक एक अच्छा प्रन्थ निकला है।

बाबू जगन्नाथ प्रसाद भानु' एक बहुत बड़े साहित्य रोवी हैं। 'काव्य प्रभाकर' और 'छन्द प्रभाकर' उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। आजन्म उन्होंने हिन्दी-देवी की सेवा की और इस वृद्धावस्था में भी उसके चरणों में पुष्पांजलि अर्पण कर रहे हैं।

बाबू कन्हैया लाल पोदार को साहित्यिक रचनायें प्रशंसनीय हैं । उनका 'काव्य कल्पद्रम'एक उल्लेख-योग्य साहित्य-ग्रन्थ है । हिन्दी-मेघदूत विमर्श' भी उनकी साहित्यज्ञता का प्रमाण है। वे भी हिन्दी-सेवा व्रत के व्रती हैं और उसको चुने ग्रन्थ अर्पण करते रहते हैं।

पंडित रामचन्द्र शुक्ल बड़े गंभीर और मननशील गद्य लेखक हैं। क- वोन्द्र रवीन्द्र को रचनाओं से जो गौरव बंग भाषा को प्राप्त है वही प्रतिष्ठा पंडित जी को लेखनी द्वारा हिन्दी भाषा को प्राप्त हुई है। हिन्दी-संसार में आप अद्वितोय समालोचक हैं। आप के गद्य में जो विवेचन-गम्भीरता दार्शनिकता और विचार की गहनता मिलती है वह अन्यत्र दुर्लभ है। इनके हाल के निकले हुए ‘काव्य में रहस्यबाद' और 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' नामक ग्रन्थ इनके पांडित्य के जाज्वल्यमान प्रमाण हैं।

मिश्र बन्धुओं ने हिन्दी-भाण्डार को एक ऐसा अमूल्य रत्न प्रदान किया है जिससे उनकी कीर्ति चिरकाल तक हिन्दी संसार में व्याप्त रहेगी । उनका मिश्र बन्धु विनोद नामक ग्रन्थ ऐतिहासिक दृष्टि से पूर्ण और अद्भुत गवेषणा और परिश्रम का परिणाम है। आज कल हिन्दोसाहित्य के