पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७०६

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उनकी लेखनी से जो निकला है, वहुमूल्य है। राय कृष्ण दास की 'साधना' उनकी किसी बड़ी साधना का फल है। यह ग्रंथ भावुकता की दृष्टि से आदरणीय है। उन्होंने कुछ कहानियां भी लिखो हैं, जो भावमयी और उपयोगिनी हैं। उनसे भी उनकी सहृदयता का परिचय मिलता है। " .

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                     नाटक

लिखने में सफलता उन लोगों को आजकल प्रात हो रही हैजो नाटक कम्पनियों में रहकर कार्य कर रहे हैं। फिर भी हिन्दी साहित्य-क्षेत्र में ऐसे नाटक भी लिग्वे जा रहे हैं जो साहित्यिक-दष्टि से अपना विशेष स्थान ग्ग्यते हैं। ऐम नाटककारों में अधिक प्रसिद्ध बाबू जयशंकर प्रसाद हैं। उनके नाटकों में मुरुचि है. और कवित्व भी । किंतु उनका गद्य और पा दोनों इतना जटिल और दुम्सद है कि वे अबतक नाट्य मंच पर नहीं आ सके। हां. साहित्यिक दृष्टि से उनके नाटक अवश्य उत्तम हैं। उन्होंने कई नाटकों की रचना की है। उनमें अजात- शत्रु, स्कन्दगुप्त और चन्द्रगुप्त उल्लेख-योग्य हैं। पंडित बदरीनाथ भट्ट बी० ए० ने दो तोन नाटकों की रचना को है। वे सब सुन्दर हैं और उनमें ऐसा आकर्षग है कि वे रंगमंच पर खेले भी गये। उपयोगिता की दृष्टि से इनके नाटक प्रशंसनीय हैं। पं० वेचन शम्मा 'उग्र' का 'महात्मा ईसा' नाटक भी अच्छा है । पं० लक्ष्मीनारायण मिश्र वी० ए० ने दो नाटक लिखे हैं. जो थोड़े दिन हुये प्रकाशित हुये हैं। एक का नाम है 'मन्यासो' और दूसरे का राक्षस का मन्दिर' । दोनों ही सामाजिक नाटक हैं और जिस उद्देश्य से लिखे गये हैं उसको पूर्ति की ओर लावक की दृष्टि पायी जाती है। परन्तु में इन दोनों नाटकों से अधिक उत्तम उनके अन्तर्जगत नामक पद्य-ग्रंथ को समझता हूं। बाबू आनन्दी प्रसाद श्रीवास्तव ने'अछूत' नामक एक नाटक लिखा है। यह नाटक अच्छा है और इसका लेखक इसलिये। धन्यवाद का पात्र है कि उसको ममता अछूतों के प्रति