पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७०८

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                    (३) 
                   उपन्यास

इस काल के प्रसिद्ध उपन्यास-लेखक पं० किशोरीलाल गोस्वामी और श्रीयुत प्रेमचन्द हैं । पं० किशोरीलाल गोस्वामी ने ६० से अधिक उपन्यास लिखे हैं । इसी सेवा और संस्कृत के विद्वान तथा कवि-कर्म-निरत होनेके कारण हिन्दी-साहित्य-सम्मेलनके बाइसवें अधिवेशन के सभापतित्व पद पर वे आरूढ़ हो चुके हैं। बाबू देवकी नंदन खत्री के बाद यदि किसी ने हिन्दी-जनता को अपनी ओर अधिक आकर्षित किया तो वे गोस्वामो जी के उपन्यास ही हैं। इनके बहुत पीछे बाबू धनपतराय बी० ए० (प्रेमचंद) हिन्दी-क्षेत्र में आये। परन्तु जो सफलता थोड़े दिनों में उन्होंने प्राप्त की वह गोस्वामी जी को कभी प्राप्त नहीं हुई। कारण इसका यह है कि प्रेमचंद जी के उपन्यासों में सामयिकता है और रुचि- परिमार्जन भी, गोस्वामी जी के उपन्यासों में यह बात नहीं पाई जाती। इसलिये उनकी उपस्थिति में ही उपन्यास-क्षेत्र पर प्रेमचन्द जी का अधिकार हो गया। उनकी भाषा भी चलती और कड़कती होती है। उनमें मानसिक भावों का प्रकाशन भी सुन्दरता से होता है। इसलिये आजकल हिन्दी साहित्य-क्षेत्र में उन्हीं की धूम है। मुदशन जी को छोटी कहानियां लिखने में यथेष्ट सफलता मिली है। आपकी भाषा सरस, सरल और मुहाविरेदार होती है तथा कहानियों का चरित्र-चित्रण विशेष उल्लेखनीय। कौशिकजी ने कहानियां और उपन्यास दोनों लिखने कोv ओर परिश्रम किया है। उनका पारिवारिक और सामाजिक भावों का चित्रण हृदय-ग्राही ओर मनोहर होता है। झांसी के बाबू वृन्दावनलाल बर्मा बी० ए० ने गढ़ कुण्डार' नामक सुन्दर उपन्यास लिख कर हिन्दी में वह काम किया है जो सर वाल्टर स्काट ने अँगरेज़ी भाषा के लिये किया है।

  पं० वेचन शर्मा उग्र ने कई  उपन्यासों  और बहुत सी कहानियों  की रचना की है। भाषा उनकी फड़कती हुई और मज़ेदार  होतो  है, उसमें ज़ोर भी होता है। यदि  उसमें  चरित्र-चित्रण  भी सुरुचिपूर्ण