पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७१७

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कल्प स्वामो गमतीर्थ के सद ग्रंथों का जो पुन: प्रकाशन और प्रचार हो रहा है वह भो महत्व पूर्ण कार्य है। स्वामी जी के उपदेश और बचन भवभेषज और संसार तापततों के लिये सुधा सगवर हैं, उनका जितना अधिक प्रचार हो उतना ही अच्छा। पं० कालू गम शास्त्री का उद्योग भी इस विषय में प्रशंसनीय है। उन्होंने भी धर्म सम्बन्धी कई उत्तमोत्तम ग्रंथ लिावे हैं। पंडित चन्द्रशेखर शास्त्री का प्रयत्न भी उल्लेग्वनोय है। उन्होंने वाल्मीकि रामायण और महाभारत का सरल और सुन्दर अनुवाद करके उनका प्रचार प्रारम्भ किया है। उनमें धम्म-लिप्सा है। अतएव परमार्थ दृष्टि से उन्होंने अपने प्रथा का मूल्य भी कम रक्खा है। आज कल गोरखपुर के गीता प्रेस से जो धर्म-सम्बन्धी पुस्तकें निकल रही हैं वे भी इस क्षेत्र में उल्लेखयोग्य कार्य कर रही हैं। बाबू हनुमान प्रसाद पोदार का उत्साह प्रशंसनीय ही नहीं, प्रशंसनीयतम है। वे स्वयं धार्मिक ग्रंथ लिखते हैं और अन्य योग्य पुरुषों से धर्म ग्रंथ लिखा कर उनका प्रचार करने में दत्त-चित्त हैं। पंडित लक्ष्मीधर वाजपेयो का अनुगग भी इधर पाया जाता है। उन्होंने धम-शिक्षा' नामक एक पुस्तक और कुछ नोति-पंथ भा लिावे हैं। उनक ग्रंथ अच्छे हैं और सामयिक दृष्टि से उपयोगी हैं। उनका प्रचार भी हो रहा है। आर्य समाज द्वारा भो कतिपय धम्म सम्बधी उत्तमोत्तम ग्रंथ निकले हैं।

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विज्ञान ।

साहित्य का एक विशेष अंग विज्ञान भी है। वाह्य जगत के तत्व की अनेक बातों का सम्बन्ध विज्ञान में है। इस विषय के ग्रंथ अंग्रेजी भाषा में उत्तम ने उत्तम मौजूद हैं परन्तु बिन्दा भाषा में अबतक उनकी न्यूनता है। डाकर बिलाकी नाथ वर्मा ने विज्ञान पर एक सुन्दर ग्रंथ दो भागों में लिखा है, उसका नाम है हमारे शरीर की रचना'। इस ग्रंथ पर उनको साहित्य-सम्मेलन से १२००) का पुरस्कार मिला है। इससे इस ग्रंथ का महत्व समझ में आता है। वास्तव में हिन्दी-संमार में विज्ञान का यह पहला ग्रंथ है. जो बड़ी योग्यता में लिंग्ग गया है । प्रयाग में विज्ञान परि-