पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७१९

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उनका बनाया हुआ। योरोपीय दर्शन' नामक ग्रंथ पांडित्यपूर्ण है । लाला कन्नोमल एम० ए० ने भी गीता दर्शन नाम का एक अच्छा ग्रंथ लिखा है। यह ग्रंथ हिन्दी संसार में आदर की दृष्टि से देखा जाता है। पं० रामगोविन्द त्रिवेदी ने संस्कृत के दर्शनों पर एक अच्छा दर्शन ग्रंथ लिखा है। यह ग्रंथ भी सुन्दर और उपयोगी है। हाल में श्रीयुत गंगाप्रसाद उपाध्याय ने एक सुन्दर दर्शन-ग्रंथ लिखा है। उसका नाम है 'आस्तिकवाद' । ग्रन्थ बड़ी योग्यता से लिखा गया है और उसमें लेखक ने अपने पांडित्य का अच्छा प्रदर्शन किया है। किन्तु उस ग्रंथ के मीमांसित विषय अत्यन्त वाद-ग्रस्त हैं। इस। लिये उसके विषय में अनेक विद्वानों के विचार तर्क पूर्ण हैं। उस ग्रंथ पर थोड़े दिन हुये कि ग्रन्थकार को हिन्दी साहित्य सम्मेलन से १२०० ) पुरस्कार प्राप्त हुआ है जो ग्रंथ की महत्ता को प्रकट करता है। बाबू वासुदेव शरण अग्रवाल एम० ए० दार्शनिक लेखों के लिखने में आज कल प्रसिद्धि प्राप्त कर रहे हैं। उनके लेख होते भी हैं बड़े प्रभावशाली और गम्भीर । वे बड़े चिन्ताशील पुस्प हैं। परन्तु जहाँ तक मैं जानता हूं उन्हों ने अब तक कोई ग्रंथ नहीं लिग्वा ।।

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हास्य-रस

हास्यग्स साहित्य के लिये ऐसा ही उपयोगी और प्रफुल्ल कर है जैसा गगन-नल के लिये आलोक माला और धरातल के लिये कुसुमावली । विद्वानों का कथन है कि हास मूर्तिमन्त हृदय विकास है। वह मनो मोहक तो है स्वास्थ्य वर्द्धक भी है। हृदय के कई विकार हास्यग्स से दूर हो जाते हैं. मनका मैल तक उससे धुल जाता है। जी को कसर की दवा और हृदय को हर लेने की कला हँसो है। यह भी कहा जाता है कि रोग की जड़ खाँमी और झगड़े की जड़ हाँसो। और यह भी सुना जाता है कि अनेक सुधारों का आधार परिहास है। किंतु देवा जाता है कि हास्यग्स के लेखक प्रत्येक भाषा के माहित्यों में थोड़े होते हैं। कान्ग यह है कि हास्यग्स पर लेखनी चलाने को योग्यता थोड़े ही लोगों में होता