पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७२

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साहित्य-भाण्डार जितना बड़ा और विशाल हो गया है, उतना बड़ा भाण्डार किसी दूसरी देशभाषा का नहीं है।

दक्षिण भारत में मराठी ही एक ऐसी भाषा है, जिसको आर्यभाषा परिवार की कह सकते हैं। मराठी को महाराष्ट्री प्राकृत की जेठी बेटी कह सकते हैं। वह दक्षिणी उपत्यका, पश्चिमीघाट और अरब समुद्र के मध्य भाग में बोली जाती है। यह बरार और उसके पूर्व के कुछ प्रदेशों की भी भाषा है, इसका प्रचार मध्यप्रान्त में भी देखा जाता है, परन्तु वहां उसका शुद्ध रूप अधिक सुरक्षित नहीं मिलता। बस्तर राज्य में से होते हुये, यह उड़िया भाषा की कुछ भूमि में भी प्रवेश कर जाती है । इसके दक्षिण में द्राविड़ भाषायें हैं, और उत्तर पश्चिम में राजस्थानी, गुजराती, और पूर्वी एवं पश्चिमी हिन्दी हैं। मराठी अपने पूर्व की छत्तीसगढ़ी हिन्दी से बहुत कुछ समानता रखती है।

मराठी में तीन प्रधान भाषायें अथवा बोलियाँ हैं। पहली देशी मराठी है, जो पूना के चारों ओर शुद्धतापूर्वक बोली जाती है। उत्तरी और मध्य कोकण में यही भाषा अनेक रूपों में दिखलाई देती है, पर सच्ची कोकणी ही दुसरी भाषा है जो कोकण के दक्षिण भाग में पाई जाती है, और इन सबों से भिन्नता रखती है। तीसरी बरारी और नागपुरी है जो बरार और मध्यप्रान्त के कुछ भाग में प्रचलित है, शुद्ध मराठी में और इसमें उच्चारण सम्बन्धी भिन्नता है । वस्तर में बोली जानेवाली भाषा को 'हलाबी कहते हैं, इसमें मराठी और द्राविड़ी का मिश्रण देखा जाता है। पहली मराठी ही शिष्टभाषा समझी जाती है, और साहित्य इसी भाषा में है। मराठी साधारणतः नागरी अक्षरों में लिखी जाती है, कोकणी भाषा के लिखने में कनारी वर्णों से काम लिया जाता है। मराठी का साहित्य-भाण्डार बड़ा है, और इसमें मूल्यवान कविता पाई जाती है। एक बात में मराठी कुल आर्यपरिवार की भाषाओं से पृथक् है, वह यह कि मगठी के उच्चारण पर वैदिककाल का प्रभाव देखा जाता है, जब कि अन्य भाषाओं ने अपने उच्चारण को स्वतंत्र कर लिया है।